Book Title: Mahapurana Part 4
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 220
________________ 190] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण [78.9.11 20 ता कुद्धएण धूमद्धएण। णं जलियजाल णं विज्जुमाल । चलज वरिसियसरेण। कयआइयेण तहु रावेण । धगधगधगंति उम्मुक्क सत्ति। वच्छयलि खुत्त रत्तावलिस। णं रत्त वेस मुच्छाविसेस। पसवणु' कुणंति हियवउं लुणेति । पत्ता-जं इंदइ जित्तउ कोवपमित्तउ तं दहमुहूं णं खयजलणु ।। ओत्यरिउ समरहिं णाणासत्यहिं दुज्जयपडिबलपडिखलणु 1914 10 दुवई—पभणइ गत्थि एण इंदइणा तुह णिहएण रणजओ' ।। भो भो राम राम मई पहरहि संचोयहि महागओ॥छ।। हो हो एप सुडु लwिs गुलशामिति लिइ अति कड्डिज्जइ । तुहं वेहाविउ ताराकतें अण्णु वि मुक्खएण हणुवंतें। हउँ देविदेण' विणउ छिप्पमि तुम्हहि माणुसेहि कि जिप्पमि । जाहि जाहि जा बंधवगत्तई णउ णिबडंति खुरुप्पविहत्तई। जाहि जाहि जा चक्कु ण मेल्लमि तुह सिरकमलु ण लुंचिबि घल्लमि। दप्पुब्भडभडवंदविमदें तं णिसुणेवि पवुत्तु वलहद्दे । इन्द्रजीत प्रविष्ट हुआ। तव धूमध्वजी क्रुद्ध युद्ध करने वाले राम ने उस पर धक-धक करती हुई शक्ति छोड़ी जो मानो चलती हुई ज्वाला अथवा विद्युन्माला हो। रक्त से लिप्त वह वक्षस्थल पर जाकर इस प्रकार लगी, मानो लाल (परिधान में) वेश्या हो या मूछ विशेष हो, क्षरण करती हई या हृदय को काटती हुई। पत्ता-जब इन्द्रजीत जीत लिया गया, तब क्रोध से प्रदीप्त, अपने समर्थ नाना शास्त्रों से अजेय प्रतिपक्ष को स्खलित करने वाला वह दशमुख उछल पड़ा, मानो दुष्ट जन उछला हो। (10) रावण कहता है तुम्हारे द्वारा इस इन्द्रजीत के मारे जाने से युद्ध विजय नहीं है। अरे राम मुझ पर प्रहार करो। अपना महागज आगे बढ़ाओ। हो हो, उसे लज्जित होना ही चाहिए, कुलस्वामी पर इसके द्वारा भला कैसे तलवार निकाली जाएगी? तारापति सुग्रीव और मूर्ख हनुमान के द्वारा तुम प्रवंचित किए गए हो। मैं देव-देवेन्द्र के द्वारा भी स्पृश्य नहीं किया जा सकता, तुम जैसे मनुष्यों द्वारा तो कैसे जीता जाऊँगा ? जब तक खरपों से विभक्त होकर भाइयों के शरीर नहीं गिरते, जाओ-जाओ, मैं चक्र नहीं छोड़ता और तुम्हारे सिरकमल को काटकर नहीं फेंकता। यह सुनकर, दर्प से उद्भट भटसमूह का 6. A पविमुक्क। 7. AP पसरणु । 1101 1. AP रणजओ। 2. P मुक्कएण13.Aदेबि णविउ छिप्पमि । 4. AP विहरति ।

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