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2061 महाकवि पुष्पबन्त विरचित महापुराण
[78.24.11 दुज्जसकारिणि णयगुणवंतह किंण दिण्ण पणइणि मगंतहं । किह कुलिसु नि घुणेहि विच्छिण्णउं तुझ वि मरणु केव संपण्णउं। हा पहं विणु मई काइं जियतें हा ह कवलिउ कि ण कयंतें। धत्ता–कायर मभी साव अभउ परोसिवि विजयसंखु पूरिवि लहु ।। तामायउ लक्षणु राउ वियक्खणु सुग्गीउवि हणुएण्ण सहुँ ।।2411 15
25 दुवई-भासिउ राहवेण दहमुह तुई सोयहि कि बिहीसणा।।
मासु खगिंदवंदवंदारय विरइयपायपेसणा' ॥छ।। विलसियचंदसुरणवखत्तइ एयह को समाणु भुयणत्तइ । एक्कु जि णवर दासु दमियारिहि जं अहिलासु गयउ परिणारिहि । जई ण वि किउ जिणधम्मुवएसणु वारिवि करुण रुवंतु विहीसणु । रामाएसें जगकंपावणु
उहि जहिं उच्चाइउ रावणु। होइ सुरिंदु वि गयगुणसारउ परयारेण सव्वु लहुयारउ । कंचणमइ विमाणि संणिहियउ पेयभूसणायारु वि विहियउ ।
उउिभय कालिखंभ सुहसुंभइणं मसाणघरकरणारंभइ । न्याय गुण से उचित मांगते हुए भी उन्हें अपयश करने वाली प्रणयिनी (सीता) क्यों नहीं दी? क्या वध भी धनों से क्षय को प्राप्त होता है ? तुम्हारा भी मरण किस प्रकार हो गया ? हा तुम्हारे बिना मेरे जीवित रहने से क्या ! हा मुझे कृतांत ने कवलित क्यों नहीं कर लिया?
पत्ता-कातरों को अभय बचन देकर, अभय की घोषणा कर शीघ्र विजय शंख बजाकर तब तक राजा लक्ष्मण और विचक्षण सुग्रीव भी हनुमान के साथ आ गये।
(25) राधव ने कहा- हे विभीषण, तुम उस रावण के लिए अफसोस क्यों करते हो, जिसकी खगेन्द्रचूद रूपी चारण चरणसेवा करते रहे हैं।
चन्द्र, सूर्य और नक्षत्रों से विलसित इस भुवनत्रय में इसके समान कौन है ? शत्रुओं का दमन करने वाले उसका एकमात्र दोष है (और वह यह) कि उसकी इच्छा परस्त्री में हुई और उसने जिनधर्म के उपदेश को नहीं माना। इस प्रकार करुण विलाप करते हुए विभीषण को मनाकर, राम के आदेश से विश्व को कैपाने वाले रावण को चार लोगों ने उठा लिया। चाहे गुणगण से श्रेष्ठ सुरेन्द्र ही क्यों न हो, परस्त्री के कारण सबको हलका होना पड़ता है। उसे स्वर्णमय विमान में रखा गया। उसके शव का शृंगाराचार किया गया। केले के खम्भे उठा लिए गए। सुख का नाश करने वाले मरघट-गृह का निर्माण प्रारम्भ हुआ। उसके ऊपर वर्ण विचित्र दुःखरूपी लता के
4.Aणिय 15.AP केम मरण। 6. P राम् ।
(25) 1. A .विरझ्याणिञ्चपेसणा। 2. A जेहि ण किउ; P बा हि किउ । 3. AP कलुण । 4,A हलुभारउ।