________________
[231
5
80.7.45
महाका-पुष्फर्मत-विरसमज महापुरानु सुहं सुत्ताइ ताइ अलिमालिउ सिविणइ णिसिहि विरामि णिहालिउ । करि करडयलगलियचुय मयजलु' अणडु खरखुरजुयखयधरयलु । हरि हरिकुलिसकविणणहयगिरि गयकरकलससलिलण्हावियसिरि। पसरिय परिमलमहुयरसबलिय सर कुसुममय मिलिय णविलुलिय । कुवलयदलविलसियकर ससहरु मिहिरु गयणमहीदिसिगयतमहरु । सस भमिर रमिर रइववसिय घड जलभरिय हरियकिसलयचिय। सरवरु सकमलु सरिवह समयरु मणिहरियासणु जियसुरमहिहरु। विसहरभवणु सुमहु सयमहधरु'। रयणणियह पहहयरबियरविड हयवह कणयकविलदीहरसिह । घता-इय जोइवि सिविणय सोलह वि अक्खिउ मुजुइ' णियपइहि ॥
तेण वि देसावहिलोयणिण फलु वियरिउ गयवरगइहि ।।9।।
दुवई—सयलसुरिंदचंदु गुणगणणिहि णिरुवमु णिसुणि सुंदरी ।।
होही तुज्झु पुत्तु गुरुहुँ मि गुरु कामकरिदकेसरी' ॥छ।। हुउ अद्भवरिसु धरि रयणवरिसु।
सरयावयासि भद्दवयमासि । से सोई हई उसने रात्रि के विरामकाल में स्वप्नमाला देखी। जिसके गण्डस्थल से मदजल च रहा है ऐसा हाथी, अपने तीव्र दोनों खुरों से धरतीतल को खोदता हुआ बैल, इन्द्र के वच्न के समान कठोर नखों से गिरि को आहत करनेवाला सिंह, हाथियों की सूड़ों के कलश-जल से अभिषिक्त लक्ष्मी. परिमल और मधकरों से मिश्रित जड़ी हई आकाश में झलती मालाएं, जिसकी किरणें कुमुददलों को विकसित करनेवाली हैं ऐसा चन्द्रमा, आकाश धरती और दिशाओं में अन्धकार को दूर करनेवाला दिनकर, रति के लिए उद्यत एवं क्रीड़ा करता हुआ भ्रमणशील मत्स्य, हरे कोपलों से आच्छादित जल से भरा घड़ा, कमल सहित सरोवर, मगर सहित समुद्र, देवपर्वत को जीतनेवासा रत्नों का सिंहासन, मागभवन, अत्यन्त विशाल इन्द्रभवन, प्रभा से सूर्य की किरणों की विभा को आहत करनेवाला रलसमूह तथा कनक और कपिल रंग की लम्बी ज्वाला वाली आग।
पत्ता-इस प्रकार सोलह स्वप्नों को देखकर उस मुग्धा ने अपने पति से कहा । उसने भी देशावधिज्ञान के लोचन से उस गजगामिनी को फल बताया 11611
हे सुन्दरी सुनो, तुम्हारा पुत्र सकल सुरेन्द्रों के द्वारा वंदनीय, गुणगण की निधि और अनुपम, गुरुओं का गुरु तथा कामरूपी करीन्द्र के लिए सिंह होगा। आधे वर्ष तक घर में रत्नों की वर्षा 2. AP °वस। 3. P ‘मयइलु 1 4. A °सुव्हविसिरि; P 'सुव्हथिय । 5. P 'धियर्यासययरु। 6. P सयमयबरु। 7.A सुखइ। 8.APणियवहि। 9. AP विवरिउ गरबर"।
(7) I. P कालकरिब'। 2. A अवयरिसु। 3. AP अस्सणहु मासि।