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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
(80.5.1
दुवई-बरणीहारहारपंडुरयर रयणिपमाणियंगओ।
चिमासाहरलागिहि गयरमणीपसंगओ' ॥छ।। जो णीसासवाउ फयसंखहिं मुयद कहि मि तेत्तीसहिं पक्खहि । माणियअमरालयसिरिहद्दई आउ जासु तेत्तीससमुद्दई। तेत्तियवरिससहासहि भोयणु जो अहिलसइ सोक्खसंपाथणु। सुक्कलेसु मज्झत्यु महाहिज तहु छम्मासकालु जइयहुँ थिउ । सइयहुं घरसिरिसंठियखयरिहि वंगदेसि वरमिहिलाणयरिहि'। इंदाएसें धणएं रइयहु विविहमहामाणिक्कहि खइयहु । विविहहट्टटेंटारमणीयहि विविहमाणिणीयणसंगीयहि । विविहारामहि विविहणिवासहि विविसिहरआलियिायासहि । घत्ता--तहिं विजयराउ णामें नवइ णिवसइ णवणिसियासिकरु॥
छायायरु जणसंतावहरु णं वरिसंतउ अंबुहरु ।।5।।
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दुवई-तहु धरि धरणि' देवि परमेसरि वपिल चारचारिणी ।।
हिरिसिरिकंतिकित्तिदिहिलच्छिहिं सेविय यियहारिणी ॥छ।।
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वह श्रेष्ठ नीहार और हार के समान धवल, एक हाथ प्रमाण देहवाला, प्रतिकार से रहित श्रेष्ठ सुख, रसनिधि और रमणी-प्रसंग से रहित था। वह तेतीस पक्षों में कभी निःश्वास वायु छोड़ता। उसकी आयु अमरालय के कल्याणों को मानने वाली तेतीस सागर प्रमाण थी। तेतीस हजार वर्ष में वह सुख को सम्पादन करनेवाले भोजन की इच्छा करता था। वह शुक्ल लेण्यावाला और मध्यस्थ था। जब उसकी अधिक-से-अधिक आयु छह माह शेष रह गई, तब बंग देश की, जिसके गृह-शिखरों पर विद्यारियाँ स्थित हैं, इन्द्र के आदेश से ६नद के द्वारा रचित, विविध महामाणिक्यों से विजड़ित, विविध हाटों और द्यूतगृहों से रमणीय, विविध मानिनी-जनों द्वारा संगीयमान, विविध उद्यानों, विविध गृहों-शिखरों से जिसके आकाश प्रदेश आलिखित हैं-ऐसी उस मिथिला नगरी में
घत्ता-विजय नामक नवीन तलवार अपने हाथ में लेनेवाला विजयराज नामक राजा था। मानो वह छाया करनेवाला तथा लोगों का संताप दूर करनेवाला बरसता हुआ मेघ हो ।
हे देव, उसके घर में सुन्दर आचरण करनेवाली वप्रिल नाम की परमेश्वरी गृहिणी थी । जो ह्री, श्री, कान्ति, कीर्ति, धृति और लक्ष्मी द्वारा सेवित तथा हृदयहारिणी थी। सुख
(5) 1. AP रमणीयसंगहो । 2. P खसिरि । 3. AP मिहला । 4. P णिवइ । (6) 1. AP परिणि ।