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महाकवि पुष्पदन्त चित्रित महापुराण पंच महब्बयाई आयारइं पंचाणुव्वयाई जगसारई। समिदीउ पंच रइयगुणछायउ भणियउ पंचवीस वयमायउ । जे लोउत्तमणाह' सिट्ठा
ते पंचत्यिकाय उवट्ठा। भासियाई पंचासवदारई
पंचिदियइं गहीरवियारइं। जीवणिकायभेय छावासय छवई छव्विह लेसासय। तच्चई सत्त सत्त णय संसिय वत्त वि भय रिसिणा उवएसिय। कम्मई अटू अट्र मय कयमल अट्ठ महीउ अट्ठ वितरकुल । णव पयस्थ णव बलणारायण धम्मभेय दह पसमुप्पायण । एयारह सावयगुणठाणई
आरह अंगई सत्थाणहाणई। बारह तब तेरह चारित्तई चोदह पुष्वई मुणिणा बुत्तई। पत्ता-पायालु सग्गु णरयरभुवणु भयवतेण पयासियजं ।
जं कि पि जिणागमि लक्खियउं तं णीसेसु वि भासियउं ।।३।।
दुवई-राएं रायपटु सिद्धत्था भालयले णिवेसिओ ।।
___णिसुणिवि चारु धम्मु अरहंतहु अप्पुणु तवु समासिओ॥छ। लइय दिक्ख जिणवरु पणवेप्पिणु पायपुज्जगुरुपाय णवेप्पिणु । सिद्धत्यु वि घरवयअइसइयउ थिउ सम्मत्तरयचिंचइयज ।
जलगिहिजलवलइयजयसिरिसहि भुंजतेण तेण सयल वि महि । पाँच गणनत हैं। पांच समितियां, जो गुणों को आश्रय देनेवाली हैं, व्रत के हिसाब से पच्चीस कही जाती हैं। लोकोत्तर स्वामी ने जिनका कथन किया है उन पंचास्तिकाय का भी उपदेश उन्होंने क्रिया। पांच आस्रवद्वारों और गम्भीर विचरित पाँच इन्द्रियों का कथन किया। जीवनिकाय के भेद, छह आत्रव, छह द्रव्य और छह प्रकार के लेश्याभाव, सात तत्त्व और सात नयों की प्रशंसा की। महामुनि ने सप्तभय का भी उपदेश किया। कर्म आठ और मल उत्पन्न करनेवाले आठ मद हैं। आठ भूमियां और आठ व्यंतरकुल हैं । नौ पदार्थ हैं । नौ बलभद्र, नौ नारायण हैं । शांति उत्पन्न करनेवाले दस धर्म हैं । श्रावक के ग्यारह गुण और स्थान है। शास्त्रों का समूह बारह अंग वाला है। बारह तप, तेरह प्रकार के चरित्र हैं । चौदह पूर्यों का भी मुनि ने कथन किया।
पत्ता-ज्ञानवान् उन्होंने पाताल, स्वर्ग, नरलोक का प्रकाशन किया। जो कुछ भी जिनागम में लिखा है, उस सबका निःशेष भाव से कथन किया।
राजा ने सिद्धार्थ के भालतल पर राजपट्ट रख दिया और अरहंत का मनोज धर्म सुनकर स्वयं ने तप स्वीकार कर लिया। जिनवर को प्रणाम कर और पूज्यपाद गुरु के चरणों को नमस्कार कर उन्होंने दीक्षा ले ली । सिद्धार्थ भी गृहव्रतों में अतिशय सभ्यदर्शन से शोभित होकर स्थित हो गया । जलनिधि जल तक विस्तृत विजयश्री की सखी धरती का भोग करते हुए उसने 4. A लोयतत्तणाहें। 5. A पायाल ।
(4) 1. A समत्तु रयणु । 2. P जवलइय" ।