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224] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
[79.14.1 14 मुसुमूरंतहु भववइरिवम्म
जणवइ साहतहु परमधम्म'। छसयाइं सयद्धविमीसियाई महियलि विहरंतहु तहु गयाई। संमेयसिहरि सो रामभिक्खु हणुवंतें सहुं संपत्तु मोक्खु। अवर वि सुग्गीवविहीसणाइ चारितवंत जे दिव' जोइ । ते सयल भडारा बीयराय अणुदिसणिवासि अहमिद जाय । सा सीय पुहइ सा विमलगत्तु पत्ताउ कप्पि कप्पामरत्तु । लच्छीहरु णरयहु णीसरेवि पायसइ सिवपउ तउ चरैवि । भासंति एव परमत्यवाइ संपय कासु वि णउ समउं जाइ । हरिणा समाण नृवखयणिसीइ के के ज खद्ध महिरक्खसीइ। घत्ता-सुयरह' गुरुवयणु मा लक्षणपंथें वच्चह ।।
भरहरिदयुउ सिरिपुप्फयंतु जिणु अंचह ।।14।। इय महापुराणे तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महाभब्वभरहाणुमण्णिए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकव्वे मुणिसुन्धयतित्थसंभूयहरिसेण*चक्कवट्टिरामबलएवलकखण- वासुदेवरावणपडिवासुदेव'गुणकित्तत्तं णाम एक्कूणासीमो परिच्छेओ
समत्तो।।7911 मुणिसुवयचरियं समत्तं ॥
(14) भवशत्रु के मर्म का छेदन करते हुए, जनपदों में जिनधर्म का कथन करते हुए, और धरतीतल पर विहार करते हुए जब उनके साढ़े छह सौ साल बीत गए, तब मुनि राम सम्मेद शिखर पर हनुमान के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए। और भी सुग्रीव तथा विभीषण, जो चारित्र से संपन्न दिव्य योगी थे, समस्त आदरणीय वीतराग, अनुदिशोत्तर विमान में अहमेन्द्र हुए। पवित्र शरीर वह सीता और सती पृथ्वी कल्पस्वर्ग में कल्पामरत्व को प्राप्त हुईं। लक्ष्मण नरक से निकलकर तप कर शिवपद को प्राप्त करेगा। परमार्थवादी (अध्यात्मवादी) यह कहते हैं कि संपत्ति किसी के भी साथ नहीं जाती। नृपक्षय के लिए निशा के समान भूमिरूपी राक्षसी के द्वारा हरिणों के समान कौन-कौन राजा नहीं खाए गए?
घत्ता-इसलिए गुरुवचनों का स्मरण करो, लक्ष्मण के रास्ते मत जाओ, भरत नरेन्द्र द्वारा संस्तुत श्रीपुष्पदंत जिनबर की अर्चा करो ।।1411
सठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में, महाकवि पुष्पदंत द्वारा विरचित तथा महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का मुनिसुवत तीर्थकर संमूत हरिषेण चक्रवर्ती, राम बलदेव लक्ष्मण वासुदेव, प्रतिवासुदेव
गुणकीर्तन नामक उन्मासीवा परिच्छेद समाप्त हुआ। (14) 1. P परममगु 1 2. AP दिदुजोइ । 3. AP °णिव" 4. A सुमहर; P समरह। 5. A omits हरिसेणचक्कट्टि 6.AP omit 'लक्खण। . AP omit 'रावणपटिवासुदेव ।