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महाकवि पंष्पवन्त विरचित महापुराण
पवरपुरिसपरिहास समीहिवि लोयदिणहिमइच्छिका में
पालिविम् अधम्म बीहिषि । रामारामें राएं रामें ।
घत्ता- - पविमगलियंभहि कंचणकुंभहिं हाणिवि पट्टबंधु विहिउ ॥ रणि मारिवि रावण भुवणभयावणु रज्जि विहीसणु संणिहिउ ||28||
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दुवई - इस को करछ भिडइ' वि भडगोंदल भुवणंगणमरावणं ॥ छज्जइ एम कासु विवहह वि सुहिपडिवण्णपालर्ण ॥ छ ॥ मेल्लिवि पचभु कासु सुयणत्तणु । तं पणिगणकुलुपीवरणु । आई उपपई दुबिचितई । ताई जिजाउहाणनृवधिइं' । ते हयवर ते गयवर रहवर । ते चामीयरभरिय महाणिहि । दहमुहाणुजाय जि समप्पिवि । लक्खणरामहिं दिष्णु पयाणजं ।
एह रूढि एहउं गरुयत्तणु
को देसु सो तं पुरु परियणु ताई आयवत्तई ई ताई वणाई अमरतरुगंधई ते असिकर दुक्करकर किंकर लंकादीउ तं जिसो जलणिहि हिल हियवs aणु व वियम्पियि साहणि तिजगजयाणउं
[78. 28.9
5 पुरिएइसेप्पणुं लवणरामें । 6. P व्हाविवि ।
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कर, अधर्म से डरकर, जिन्होंने लोकहित और दीनहित के अनुकूल काम किया है, तथा स्त्रियों के लिए रमणीय राजा राम ने,
( 29 ) 1.AP भिडेवि भङ : 2. AP "जिव° ।
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पत्ता - जिनसे पवित्र जल गिर रहा है, ऐसे स्वर्ण कलशों से स्नान कराकर, पट्ट बांध दिया। युद्ध में भुवन भयंकर रावण को मारकर राज्य पर विभीषण को प्रतिष्ठित कर दिया ।
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ऐसा और कौन है जो योद्धाओं के कोलाहल में लड़ता है और विश्व के प्रांगण को रावण रहित करता है ! ऐसा और किसे शोभा देता है जो सज्जनों को दिए गए वचन का प्रतिपालन करता है ! यह प्रसिद्धि, यह गुरुता और सुजनता राम को छोड़कर और किसके पास है ? वह कोष, देश, वह परिजन और पुर, स्थूल स्तनोंवाला वह वैश्याकुल, वे आतपत्र और बालें, सुविचित्र यान और जंपान, कल्पवृक्षों से सुगंधित वन और राक्षसकुल के वे नृपचित्र, तलवार हाथ में लिये हुए कठोरकर वे अनुचर, वे अश्ववर, गजवर और रथवर, वही लंकाद्वीप और वही समुद्र, स्वर्णों से भरी हुई वे महानिधियों, इन सबको अपने मन में तृण के समान समझकर तथा दशमुख के छोटे भाई को देकर धरती की सिद्धि के लिए राम और लक्ष्मण ने तीनों लोकों को जीतने वाला प्रस्थान किया ।