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[79. 2. 11
महाकवि पुष्पक्षम्स विरचित महापुराण चक्किहि पय वंदिवि वइरितासि तें दिण्णु तासु सउणंदयासि । पत्ता-लक्खणकयथुइहि गरदेवहिं कण्हु पउत्त।
सजलहेमघऽहं अछुत्तरसहसें सित्तउ ।। ३॥
संचलिउ राजा अरितिमिरमाणु अणुगंग पुणु वि दिण्णउं पयाण। कल्लोललुलियमससुनार दियहिं तु सुरसरिसाएं। हयगयवरखंधाइण्णजोह
थिउ काणणि बलु दूसोहसोहु। हरिणा रहु वाहिउ जलहिणीरि पायालमूलपूरणगहीरि।। धणुगुणविमुक्कु सरु सुद्धिवंतु संप्रायउ' मागहु पय णवंतु । तें देवहु दाणवमहणासु
दिपणउ अहिसेउ जपणासु । कुंडलजुयलउं मणिकिरणणीडु ससिकंतु हारु मणहरु किरीडु । तहि होतउ गउ अणुजलहितोरु साहिउ वरतणु पणवियसरीरु । केअरमउडकंकणपवित्तु चूडामणिकंठाहरणजुत्तु। तहिं लहिवि विणिग्गउ गउ तुरंतु सिंधुहि पइसरिवि पहासु जित्तु। 10 संताणमाल सेयायवत्तु
मुप्ताहलदामु मलोत्तु । पालेप्पिणु पुणु परियलियगव्व साहिय वरुणासामेच्छ सव्व । चरणों की वन्दना कर, उसे पात्रुओं को त्रस्त करनेवाली सोनन्दक नाम की तलवार दी।
घत्ता–जिन्होंने लक्ष्मण की स्तुति की है ऐसे लोगों ने उसे नारायण कहा और एकसी आठ सजल स्वर्णकलशों से उसका अभिषेक किया ||2|1
(3) शत्रु रूपी अंधकार के लिए सूर्य वह राजा चला। उसने गंगा के किनारे-किनारे प्रस्थान किया। कुछ ही दिनों में वह, जिसकी लहरों में मत्स्य और शिशुमार उछल रहे हैं ऐसी गंगानदी के द्वार पर पहुँचा। जहाँ योद्धा हाथियों और घोड़ों के कंधों से उतर गये हैं, ऐसा तम्बुओं से शोभित सैन्य कानन में ठहर गया। लक्ष्मण ने पाताललोक तक सम्पूर्ण रूप से गम्भीर समुद्र के जल में रथ को और धनुष की डोरी से मुक्त शुद्धिवंत तीर को चलाया। मागध पर पड़ता हुआ आया। उसने दानवों का नाश करनेवाले देव जनार्दन का अभिषेक किया और कुण्डलयुगल मणि किरणों का घर चन्द्रकान्त हार तथा सुन्दर मुकुट दिया। वहाँ से होता हुआ वह समुद्र के किनारे गया, और प्रणतशरीर बरतनु को सिद्ध किया। केयूर मुकुट तथा कंकणों से पवित्र एवं कण्ठाभरण युक्त चूड़ामणि लेकर वह शीघ निकला और प्रस्थान कर दिया। सिधुनदी में प्रवेशकर प्रभासतीर्थ को जीता। संत्राणमाला, श्वेत आतपत्र, मलसमूह से रहित मुक्तामाला को प्राप्त कर, पश्चिम दिशा के परिगलित-गर्व समस्त म्लेच्छों को सिद्ध कर लिया।
(3) 1.P रामु । 2. AP अणु मग्में। 3.P°सुसुआरु। 4. AP °गयरहखंधा। 5. AP उववणि । 6. बलवूमोह। 7. AP संपाइउ | 8. AP पावेप्पिणु गउ । 9. A परिगलिय ।