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महाकवि पुष्परत विरचित महापुराण
[79.7.1
जह जाणइ सो किर वासणाइ तो ताइ केम्व खणधसणाइ।
जातु तिहमणु असेस तो किं किर चीवरधरणवेसु । सिविणोवमु जइ णोसेसु सुग्णु तो गुरु ण सीसु णउ' पाउ पुण्णु । जिणपिसुणहु णियवयणु जि कयंतु सिवु णिककलुं णिप्परिणामवंतु। सयलु वि संसारिउ गोरिकंतु णञ्चइ गायइ तो किं महंतु। जो आहवि वदरिहि मलइ माणु धणुगुणि संधिवि अग्गेयबाणु'। पुरु' विद्धउ जेण रइवि ठाणु किं तासु वयणु होसइ पमाणु। विणु बत्तारें सिद्ध तु केत्यु सिद्ध'तें विणु किह मुणइ वत्यु। अप्पउं अंबरि' संजोयमाणु कउलु वि भावइ महु मुक्कणाणु । णिच्चेयणि सुसिरि सिवत्तु थवइ पसुमासु खाई महु सीहु' पिबह। परु मोह्इ सई तमणियरभरिउ इंदियवसु णिदियसाहुचरिउ । णिवडइ रउद्दि घणि घणि तमंधि णारयणहणरवि णरयरंधि । घत्ता-झायहि जिणधवलु अण्णण ण दक्किउ जिप्पद ।।
करयलफंतिहरु पकेण पंकु किं धुप्पइ ॥३॥
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यदि वह वासना (सूक्ष्म संस्कार) से उसे जानता है तो क्षण में ध्वंस को प्राप्त होनेवाली उससे यह कैसे संभव ? यदि समस्त त्रिभुवन इन्द्रजाल है तो फिर चीवर धारण करनेवाले वेष से क्या? यदि निःशेष वस्तु स्वप्नतुल्य और शून्य है तो न गुरु है और न शिष्य है, और न पापपुण्य है। जिनवचनों के विपरीतजनों का ऐसा अपना ही कथन यम के समान है कि शिव निष्फल और परिणाम रहित है । यदि समस्त संसार गौरीकांत (शिव) मय है तो वह महान् नाचता और गाला क्यों है ? जो युद्ध में शत्रुओं का मानमर्दन करता है, धनुष की डोरी पर आग्नेय बाण का संधान करता है, जिसने स्थान की रचना करने के लिए पुर का विनाश किया, क्या उसका वचन प्रामाणिक हो सकता है ? वक्ता के बिना सिद्धान्त कैसा? सिद्धान्त के बिना वस्तु का विचार कैसा? स्वयं को आकाश में संयुक्त करता हुआ कौल (अभेदवादी वेदान्ती) भी मुझे ज्ञान से रहित दिखाई देता है। अचेतन आकाश में वह शिव की स्थापना करता है, वह पशुमांस खाता है, मधु
और सुरा का पान करता है। दूसरों को मुग्ध करता है, स्वयं अज्ञान-अन्धकार से भरा हुआ है। इन्द्रियों के वशीभूत है, और साधुओं के चरित की निंदा करनेवाला है। वह भयंकर तमान्ध सधन रौद्र नरक में गिरता है, जिसमें नारकियों का 'मारो-मारो' शब्द हो रहा है, ऐसे नरकबिल में।
घत्ता..इसलिए तुम जिनवर का ध्यान करो। दूसरे के द्वारा पाप नहीं जीता जा सकता, करतल की कान्ति का अपहरण करनेवाला पंक, क्या पंक से ही धुल सकता है ? ||711
(7) 1.A णो पाउ । 2. A कि सो महंतु; P कि ती महतु। 3. A भग्गेउ वाणु । 4. P पूरण विद्ध:15. A अंतरिर। 6.A मज्जु। 7.A घणघणरहि णिवडद तमंधि। 8.AP किह पुणह।