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79.6. 13)
महाका-पुष्पंत-विरायड महापुराणु
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अणुदिणु परिणामह जाइ लोउ खणि आणंदिउ खणि करइ सोउ । खणि खणि अण्णत्तह' जाइ केव सिमिहिउ तेल्लु सिहिभाउ जेव । उम्पत्तिवित्तिपलएहिं गत्थ पेच्यहि अप्पर पोग्गलपयत्यु। पज्जाउ जाइ दब्यु जि पयासु घड मउड सुवण्णहु पत्थि णासु । जं रुच्चइ तं तहिं होउ बप्प णिज्जीवणिरण्णइ कहिं वियप्प | जो मणुयलोइ सी णरिथ सग्गि जो सग्गि ण सो पायालमगि । जो घरि सो किं णीसेसणामि जो गामि ण सो आरामथामि । एवत्थिणस्थिणिब्बूढसच्चु अरहतें साहिउ परमतच्चु। जइ जगि सव्वत्थ वि सब्बु अस्थि तो किं गयणगणि कुसुमु णत्थि । जइ एक्कु जि सयलु जि जगु णियाणि तो कोणारउ को सुरक्मिाणि । को खंडिउ को वरइत्तु थक्कु सामण्णु अमरु को' कवणु समकु। घत्ता--जइ स्वणि खणि जि खउ सईबुद्ध जीवह दिट्ठउ ।।
ता चिरु महिणिहिउ वसुसंचउ केण गविट्ठउ ।।6।।
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(6) प्रतिदिन लोक परिणमन को प्राप्त होता है, क्षण में आनन्दित होता है और क्षण में शोक को प्राप्त होता है। क्षण-क्षण में वह अन्यत्व को उसी प्रकार प्राप्त होता है जिस प्रकार आग से जलता हुआ तेल अग्नित्व को प्राप्त होता है। उत्पत्ति, वृत्ति (ध्र वत्व) और प्रलय के द्वारा ग्रस्त जीव अपने को (पुद्गल) पदार्थ समझता है। पर्याय होती है और स्पष्ट ही द्रव्य है। घट और मुकुट में मिट्टी और स्वर्ण का नाश नहीं होता। जहाँ जो रुचता है वहीं बेचारा वही होता है : निर्जीव और निरन्वय (जोवन रहित, अन्वय रहित) में विकल्प कहाँ ? जो मनुष्यलोक में है, वह स्वर्गलोक में नहीं है, और जो स्वर्गलोक में है, वह नरकलोक में नहीं है। जो घर में है, क्या वह सर्वपदार्थों में है ? जो ग्राम में है, वह आराम स्थान में नहीं है। इस प्रकार जिसमें अस्ति नास्ति के द्वारा सत्य प्रतिपादित है, ऐसा परमतत्त्व अरहंत के द्वारा कहा गया है। यदि जग में सर्वार्थ भी सब है, तो आकाश के आंगन में कुसुम क्यों नहीं होता? यदि अन्तिम समय, समस्त विश्व एक है, तो कौन नारकीय है और कौन सरविमान में ? कौन खण्डित है और कौन पूर्ण? सामान्य देव कोन और इन्द्र कौन ?
पत्ता—यदि स्वयंबुद्ध द्वारा जीव का क्षण-क्षण में क्षय देखा जाता है तो प्राचीनकाल में धरती में रखे गए धनसंचय की खोज किसने की?
(6) 1. AP अण्णण्णहु । 2. A मरि । 3. AP 'विणिग्णय । 4. AP पीसेसगामि । 5. AP पारामि । 6. AP एक्कु वि सयलु वि। 1. AP सो।