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79.2, 10]
महाका-पुष्फयंत-विराज महापुराण तं णिमुणिवि पभणइ रामु एव अज्जु वि तुम्हह मणि भंति केव। जांब वि रणि णिद्दलियउ दसासु जाव वि सिरि दिग्ण विहीसणासु । तांव पि तुम्हहं संदेहबुद्धि लइ किज्जइ सव्वहं हिययसुद्धि। धत्ता–जो अतुलई तुलइ बलवंत वि रिउ विणिवायइ ।।
सो हरि कुलधवलु सिल एह कि ण उच्चायइ ।।1।।
दढकदिणथोरदीहरकरासु विसिवि रामें लच्छीहरास ता भाइवयणतोसियमणेण पविउलभुपचालिय णं धरित्ति गं रामहु केरी विमल कित्ति दोसंति लोयणयणहं सुहाइ उपरि सीरिहि कसणायवत्तु सोहइ सिलग्गु कण्हेण धरिलं उययम्मि अरुणकिरणोहतंबु वीरेहिं वि मुक्कड सीहणाउ
दहवयणवालिजीवियहरासु । आपस दिण्णु णियबंधवासु । उच्चाइय सिल लह लक्खणेण । णावइ तिखंडमहिरायविक्ति । णं णिरु असज्झसाहणसमित्ति'। भदियभुयदंडुद्धरिउ णाइ । णं जयजसवेल्लिहि' तण पत्तु । बहुपोमरायकरजालफुरिउं । उययाचलभाणुहि णाइ बिंबु। सउणंदउ णामें जक्खु आउ।
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वाला होगा। यह सुनकर राम इस प्रकार कहते हैं-क्या आज भी आप लोगों के मन में भ्रान्ति है ! जब उसने युद्ध में रावण का निर्दलन किया, जबकि विभीषण को लक्ष्मी प्रदान की गई, तब भी तुम लोगों में सन्देह बुद्धि है ! लो आप लोग अपने मन की शुद्धि कर लें।
पत्ता-जो अतुलों को तौल लेता है, जो बलवान् शत्रु को भी मार गिराता है ऐसा वह श्रेष्ठ नारायण लक्ष्मण क्या यह शिला नहीं उठा सकता? |1||
दृढ़, कठिन, स्थूल और दीर्घ हाथोंवाले, रावण और वालि के जीवन का अपहरण करने वाले, लक्ष्मी को धारण करनेवाले अपने भाई लक्ष्मण को राम ने आदेश दिया। तब अपने भाई के वचन से संतुष्ट मन होकर लक्ष्मण ने उस शिला को उठा लिया, मानो वह विशाल भुजाओं से चालित धरती हो, मानो त्रिखण्ड महीराज की वृत्ति हो, मानो राम की विमलकीति हो, मानो अत्यन्त असाध्य साधन का परमोत्कर्ष हो। लोगों के नेत्रों को ऐसी दिखाई देती थी जैसे विष्णु द्वारा बाहुदण्ड से उद्धृत, बलभद्र के ऊपर कृष्ण-आतपत्र (छत्र) शोभित हो । मानो जय और यश रूपी लता का पत्र हो। अनेक पद्मराग मणियों के किरणजाल से स्फरित लक्ष्मण के द्वारा उठाया गया शिलाग्र ऐसा शोभित होता था, मानो उदयाचल के सूर्य का अरुण-किरण-समूह से आरक्त बिम्ब हो। वहाँ वीरों ने सिंहनाद किया, वहाँ सौनन्द नाम का यक्ष आया। उसने चक्रवर्ती के 6. AP पुणरवि सिरि।
(2) 1. A रामु । 2. P घरत्ति । 3. AP सवित्ति । 4. A जसजय' । 5. AP जालजजि ।