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204] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
[78.22.9 हा पंचेंदियविसयसुहावह हा पिय पूरियसयणमणोरह। हा लंकाहिव खेपरसामिय देव गंधमायणगिरिगामिय । हा मंदरकंदरकयमंदिर
दिव्वपोमसरपोमिंदिदिर"। पई विणु जोग दसास जी जिज्जइ तं परदुक्खसमूह सहिज्जइ । हा पिययम भणंतु सोयाउरु । कंदइ णिरवसेसु अंतेउरु । धत्ता-ता णियकुलभूसणु ढुक्कु विहीसणु तहिं तक्खणि सुबिसण्णमइ। जगकाणणमाणणु भडपंचाणणु जहि णिवडिउ लंकाहिवइ ।।22॥ 15
23 दुवई-अप्पउ रयणकिरण विष्फुरियइ छुरियइ हणइ जावहिं॥ " जीविउ विद्दवंतु कयसंतिहिं मंतिहि धरिउ तावहिं ॥छ।। हा हा कयउं कामु मइं भीसणु णियतणु पहणिवि रुयइ विहीसणु। अज्जु सरासइ सत्थु ण सुयरइ अज्जु कित्ति दस दिसहि ण वियरइ । जयसिरि पत्त अज्जु विह्वत्तणु मयउ अज्जु पहु सत्तिपवत्तणु । अज्जु इंदु भयवसहु म गच्छउ अज्जु चंदु सहुँ कतिइ अच्छउ । अज्जु तिश्वु णहि तवउ दिणेसरु अज्जु सुयउ णिच्चितु फणीसरु । अज्जु जलणु जालउ वित्थारउ वइवसु अज्जु सइच्छई मार।
णेरिउ अज्जु रिछु आवाहन दिक्करिउलु मा कासु वि बीहड । विषयों के लिए सुखावह, हा प्रिय स्वजनों का मनोरथ पूरा करने वाले, हा लकानरेश, विद्याधरों के स्वामी, हा गंधमदन पर्वतगामी देव, हा मंदराचल की कंदरा में गृह बनानेवाले, हा दिव्य पम सरोवर की पपिनी के भ्रमर दशमुख, यदि तुम्हारे बिना जग में जिया जाता है तो परम दुःख समूह को सहन करना है। हा प्रियतम कहता हुआ शोक से व्याकुल समूचा अन्तःपुर क्रंदन करता है।
घत्ता- इतने में विषण्णमति, अपने कुल का आभूषण विभीषण तत्काल वहां पहुंचा कि जहाँ मनुष्य रूपी मानस का मान्य भदसिंह लंकाराज पड़ा हुआ था।
23 रत्नकिरणों से चमकती हुई छुरी से जब तक वह अपने को मारता है, तब तक जीवन का नाश करने में तत्पर उसे शांति स्थापित करनेवाले मंत्रियों ने पकड़ लिया। अपने शरीर को पीटते हए विभीषण रोता है-मैंने अत्यन्त बुरा कर्म किया। आज सरस्वती शास्त्र की याद नहीं करती, आज कीर्ति दसों दिशाओं में विचरण नहीं करती, विजयश्री आज वैधव्य को प्राप्त हो गई। शक्ति का प्रवर्तन करने वाला स्वामी आज चला गया। आज इन्द्र भय को प्राप्त न हो, आज चन्द्रमा अपनी कांति के साथ रहे, आज सूर्य आकाश में खूब तपे, आज नागराज खूब सोए, आज आग ज्वाला का विस्तार करे। यम आज स्वेच्छा से लोगों को मारे। नैऋत्य आज रोछ पर सबारी करे। दिग्गज कुल अब किसी से न डरे । आज वरुण अपनी प्रशंसा कर ले। आज पवन 6.A पोमदिविर।
(23) 1.A विरिया । 2. AP अज्जु पत्त । 3. A जालाविस्थारउ ।