________________
188]
178.7.6
महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण महिमहिहरचालण बलवंत रणि रविकित्ति वीरहणुवंतहु । खरकिरण ब तमतिमिरणिहायह णलिण केउ लग्गउ खररायहु । अंगयभडु आहंडलकेउहि णावइ मुणिवरिंदु शसकेहि। इंदवम्मु कुमुयह दूसीलहु ___ कयबहुदूसणु दूसणु णीलहु । "संदणचलणवलणसंफेडहिं लउडिघायजज्जरियकिरीहि । दंतिदंतसंघट्टणघोरहि
सेलसिलायलपित्तपहारहि। सव्वलमुसलकुलिसझसकोंतहि भिडि वालकरवालफुरतहि । धत्ता-रयछइयद्वियंतहि भडसासंतहिं जुज्जंतिहि खयरामरहि ॥
संचूरियमउडहि णिवडियसयहिं महि मंडिय धयचामरहिं॥
10
दुवई–ता लंकाहिवेण हलहेइहि रिछसुपिछसज्जिया।।
एक्क दुवीस तीस पण्णास सरा सहसा विसज्जिया ॥छ।। धरियलोह तेण हि अनुय दन्ना तेण जि ने मोकालज्जय। चित्तविचित्त तेण ते चलयर पहुणवंत तेण ते णपर। धम्मविभुक्क तेण ते ह्यपर रोसवसिल्ल तेण ते दुद्धर।
तिक्ख तेण ते वम्मुल्लूरण सहल तेण से आसापूरण। हत्तुमान से युद्ध में अर्ककोति, अंधकार के समूह खरराज से सूर्य की किरण की तरह नलिनकेतु भिड़ गया । इन्द्रकेतु से भट अंगद भिड़ गया जैसे कामदेव से मुनिवरेन्द्र भिड़ जाता है । इन्द्रवर्मा दुशील कुमुद से, अनेक दूषण करने वाले दूषण से नील(भिड़ गया)। रथचक्रों के चलने और मुड़ने के धक्कों, लकुटियों के आघातों, जर्जर मुकुटों, हाथियों के दांतों के संघटनों से भयंकर, शैल शिलातलों पर दिए गए प्रहारों, सब्वलों, मूसलों, कुलिसों, झसों और कोंतों से, चमकते हुए भिदिपालों और करवालों से,
धत्ता-धूल से दिगंतों को आच्छादित करने वाले, युद्ध करते हुए, विद्याधरों और अमरों से संचूरित मुकुटों से, गिरे हुए रथों और ध्वज-चामरों से धरती मंडित हो गई।
तब रावण ने राम पर रीछ के बालों के मुख से सज्जित एक दो बीस तीस और पचास तौर सहसा छोड़े। बे धरियलोह (लोभ धारण करने वाले, लोहा धारण करने वाले थे इसीलिए वे गुणच्युत (गुण, डोरी से च्युत) थे। वे ऋजुक (सीधे) थे इसीलिए मोक्ष के लिए उद्यत थे। चित्र-विचित्र थे इसलिए चंचल थे। पेहण (पंख) से सहित थे, इसीलिए नभचर थे । धर्म से विमुक्त थे, इसीलिए पर को आहत करने वाले थे। क्रोध के वशीभूत थे, इसीलिए कठोर थे। तीखे (पैने) थे इसलिए मर्म का उच्छेद करने वाले थे। सफल थे, इस आशा को पूरा करने वाले 3. A लीलह । 4. A सणचलण" । 5. AP 'करवाल मुयंतहिं । 6. A अजिमाहिति ।
(8) 1. A हलएवहि । 2. A °सूपुंछ । 3. A तीसवीस । 4. मोक्खजुय ।