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महाका-पुष्फयंत-बिरहपज महापुराणु रयगय तेण जि ते पलचक्खिर पहियजोह तेण जि जयखिर । दीहायार णाय णं आया
पत्तदाण' जिह सयगुण जाया। एत णहंतें महंत भयंकर जिगिजिगंत पडिबक्खखयंकर । बाहि बाण हाणिवि काकुत्थें रावणु विहसिवि भणिउ समत्थे। घता-णियपरिणिहि अग्गइ सयणसमग्गइ घरि बाणासणु गुणिउंजिह ॥
भडरुहिररसारुणि आदि दारुणि को विधइ दहवयण तिह ।।8।।
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दुवई-हो हो जाहि जाहि तुहु णासहि धणुसिक्वाविवजिओ॥
मा णिवडहि करालि कालाणलि लक्षणसरि परज्जिओ।।छ।। कहिं विवि मुट्ठि कहिं चावलट्ठि। कहिं बद्ध ठाणु कहिं णिहिउ बाणु। धणुवेयणाणु
बुजाहि पहाणु। गुरुगेहु मंपि
अण्णवउ कि पि। पुणु देहि जुज्म महुं तुहं सुसज्छु। सीयावहार
जज्जाहि जार। तहिं रणवमालि सुहडंतरालि। खरकरपवठ्ठ दहो? रुटु ।
णिववियदुछु इंदाइ पइट्ठ। थे। रजगत (वेगवाले) थे, इसीलिए मांस खाने वाले थे । योद्धाओं को मारने वाले थे, इसीलिए विजय के आकांक्षी थे। लम्बे आकार वाले वे मानो सांप हों, पात्रदान की तरह सौ गुने हो गए। आकापा के मध्य से आते हुए, महान् भयंकर चमकते हुए और प्रतिपक्ष के लिए भयंकर बाणों को बाणों से आहत कर, समर्थ राम ने रावण से हँसकर कहा--
घत्तारे रावण, स्वजनों से परिपूर्ण अपने घर में गृहिणी के सम्मुख जिस तरह तुमने धनुष को समझा है, भटों के रक्त रस से अरुण दारुण युद्ध में उस प्रकार कौन विद्ध करता है ?
हो हो रे रावण, तू जा-जा। धनुर्वेद शिक्षा से रहित तु जा-जा। लक्ष्मण के तीरों से पराजित तु कराल कालाग्नि में मत पड़।
कहाँ दृष्टि-मुष्टि, और कहाँ धनुर्यष्टि ? कहाँ लक्ष्य बांधा और कहाँ बाण रखा ? धनुर्वेद के ज्ञान को किसी प्रधान गुरु के घर जाकर कुछ और सीख लो। फिर युद्ध करो। मेरे लिए तुम समाध्य हो । सीता का अपहरण करने वाले रे जार, तू जा-जा। तब वहाँ युद्ध के कोलाहल से पूर्ण सभटों के बीच, खरकरों से स्पष्ट होठ चबाता हुआ, क्रुद्ध तथा दुष्टों का नाश करने वाला 5. PA पतवाणु।
(9) 1. P किह । 2. A बुजिम। 3. A अण्णमउ; P अण्णविउ। 4. P reads this line as: जज्बाहि जार, सोयाबहार। 5.पठ्ठ ।