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महाका-पुष्फर्यत-विरहबर महापुराणु
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परमणीयणसिहरणिरिक्षण मरु मरु खल अयाण दुवियरखण। कि सीहेण सरहु दारिज्जा पई मि काई लक्खणु मारिज्जइ । रूवविसेसपरज्जियमेण इ. जामि जामि जइ अण्पहि जाणइ । जामि जामि जइ सेव समिच्छहि महुं पयपंकय पणविवि अच्छहि । चत्ता-पई रणहि मारिवि भिच्च बियारिवि ढोइवि लक विहीसणहु ।।
बोल्लिउ" पालेसमि हउँ जाएसमि सहुं सीयइ सणिहेलणहु 11 011
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दुबई–ता दसकंधरेण मणिकुंडलमंडियगंडएसयं ।।
छिणं असिसुवाइ णवणिसियइ सीयाएविसीसयं ।।छ।। रूसिवि रामहु अगाइ चित्तज' पुणु सखारु खलखुद्दे वृत्तउ । लइ लइ राहव घरिणि तुहारी एह ण होइ कया वि महारी। मुय पिय पाच्छांव मुच्छिउ रहुवइ करपहरण णिवडिउ ण विहाव। सित्तउ हिमसीयलजलधारहि आसासिल चमरिरहसमीरहि। कह व कह व संजाउ सचेयणु कण्णामुहणिहित्तथिरलोयणु। ताव विहीसणेण विण्णत्तउं सीयामरणु ण देव' णिरुत्तउं ।
विमर्दन करने वाले बलभद्र ने कहा-रे दूसरों की स्त्रियों के स्तन के अग्रभाग को घूरने वाले अपंडित अज्ञानी दुष्ट मर-मर, क्या सिंह के द्वारा शरभ विदीर्ण किया जाएगा? तुम्हारे द्वारा तो भला क्या लक्ष्मण मारा जाएगा? अपने रूप विशेष से मेनका को पराजित करने वाली जानकी यदि तुम दे दो तो मैं जाता हूँ। मैं जाता हूँ, जाता हूँ, यदि तुम मेरी सेवा करना मान लेते हो और मेरे चरणकमलों को प्रणाम करके बने रहते हो।
__घत्ता-तुम्हें रणमुख में मारकर, भृत्य का विचार कर, विभीषण को लंका देकर, मैं अपने कहे हुए का पालन करूँगा और सीता देवी के साथ अपने घर जाऊँगा।
तब, मणिकुंडल से मंडित है गंडदेश जिसका ऐसे दशानन ने सीता देवी का सिर छुरी से काट दिया और ऋज होकर राम के आगे डाल दिया और फिर उस दुष्ट छुद्र ने कहा-रे राघव, ले-से अपनी गृहिणी, यह कभी भी हमारी नहीं होगी। अपनी प्रिया को मरा हुआ देखकर राम मूठित हो गए। उनके हाथ से शस्त्र गिर गया परन्तु वह नहीं जान सके । हिम से शीतल जल धारा से सिक्त वह चामरों की हवाओं से आश्वस्त हुए। वह किसी प्रकार बड़ी कठिनाई से सतन हुए। उन्होंने अपने स्थिर नेत्र कन्या के मुख पर कर लिए। इतने में विभीषण ने कहा-हे 5. P परविंद। 6. A सिहेण । 7. AP पाव। 8.A'परिज्जिय° 9.A रणमुहि । 10. AP बोलिट।
(11) 1. AP दहकधरण। 2. AP असिसुया, मायामयसीयाएषि । 3.P वित्तउ। 4. AP सीययजस। 5. AP कंतामुह 16. A°णित 7.AP हो।