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78.20.9]
महाकह-पुप्फयंत विरचिया महापुराणु अरितावणेण
तं रावणेण। भुयखलिउ जइ वि बलि मड्ड तइ वि। वच्छयाल लग्गु को किरण भग्गु ।
णिवसिरिपमत्तु परणारिरत्तु । घत्ता-दहवयणह केरउ दुहुई जणेरउ तिक्खइ धारइ सल्लियउं ।। परपरिणीमंदिर हियत असुंदर चक्क फाडिवि घल्लियां ।। 19॥
20 दुवई–ता दहबयणि पडिइ पडियई सुरकुसुमई सिरि उविदहो ।।
हउ दुंदुहि गहोरु जउ घोसिउ पसरिय दिहि सुरिंदहो ॥छ।। । ता सुहडेहि दिछु रणमहियलु' वणवियन्नियलोयिजलजंजलु । भग्ग रहंग रहहि परिवाहि म पगहि वंसविरहियहिं। चामर पडिय हंस णं मारिय घुलिय जोह पडिजोहवियारिय । मोडियदंडई छत्तइंधवलई दिदुई णाइ अणालई कमलई। छिण्णगुणई महिलुलियइं चाबई णं खलचित्तई भंगुरभाव।। धम्मगुणज्झिय सुद्धिइ जुत्ता बाण रिसिव्व मोक्खं संपत्ता। दाणवंत मत्थयखणणुज्जय' यावइ पिसुण' सर्ट णिरु दुज्जय।
शत्रुओं को सताने वाले रावण ने यद्यपि बलपूर्वक (पकड़ना चाहा) तब भी भुजाओं से स्खलित होकर उसके वक्षस्थल से जा लगा। उससे कौन भग्न नहीं होता? राज्यलक्ष्मी से प्रमत्त, परस्त्री में अनुरक्त,
घत्ता–दुःखों का जनक, परस्त्रियों का घर स्वरूप, तीखे शल्यों से भेदा गया, रावण का असुन्दर चित्त चक्र ने फाड़कर डाल दिया ।
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रावण के धरती पर पड़ते ही लक्ष्मण के सिर पर दिव्य पुष्पों की वृष्टि होने लगी। गंभीर दुंदुभि बज उठी । जय घोषित होने लगी। देवेन्द्र का भाग्य प्रसारित होने लगा। .
उस समय योद्धाओं ने युद्धभूमि को देखा जो घावों से रिसते रक्त रूपी जल का तालाब था। रथों रथिकों, बांसों से रहित फटे हुए ध्वजारों के साथ चक्र भग्न हो गए। चामर गिर गए, मानो हंस मारे गए । विदारित योद्धा और प्रतियोद्धा पड़े हुए थे। टूटे हुए दंडों वाले धवल छत्र ऐसे लगते थे मानो विना मृणाल के कमल हों। डोर कटे धनुष धरती पर पड़े हुए थे मानो भंगुर भाव वाले दुष्टों के चित्त हों। धर्म गुण से रहित तथा शुद्धि से युक्त ऋषि की तरह बाण मक्ति पा गये थे। अंकुश से युक्त गज ऐसे प्रतीत होते थे, मानो अत्यन्त दुर्जेय दुष्ट हों ।
10. A वलवंड; P वलियंडु ।
(20) | A रणि महियन । 2. AP मोक्खु णं पत्ता। 3.A "मंथय'। 4.Aपिसुणसत्थु ।