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78.7.5] महाका-पुष्फयंत-बिरइया महापुराण
1187 णवर जयसिरिहरो अरिहरिणहरिबरो। कुलकमलदिणयरो अणयजणभययरो। रणियगुणधणुरयो जणियखलपरिहवो। अमियअमरिसवसो तिजगपसरियजसो। सयणकसणियदिसो फणि व विसरिसविसो। कुइयवइवसणिहो सिहि व विलसियसिहो। थरहरियमहियलो धयपिहियणह्यलो। करकलियपहरणो पवरबलजियरणो।
दढकठिणथिरकरो' पडिसुहडमयहो। पत्ता-तिहुयणरावणु रूसिवि रावणु धाइउ रामहु संमुहु किह ।।
णयमेहु व मेहहु सीह व सीहह दिसहत्यिहि दिसहत्थि जिह ।।6।। दुवई-ता करिकरसमाणकरकढियगुणधणुदंउमंडलो' ।।
कणयपिसक्कप खरुइ- रंजियमाणिमयकण्णकुंडलो ॥छ।। उक्खयदुक्खलक्खतरुकंदहु इंदइ इंदसरिसु गोविंदहु । विडविचिधु किक्किधणिवासहु वालिकंठकदलजमपासह । णि बहु णियकुलभवणपईवहु भिडियउ कुंभयण्णु सुग्गीवहु ।
ऐसे उस युद्ध के होने पर केवल जयश्री का धारण करने वाला, शत्रु रूपी हरिणों के लिए सिंह, कुल कमलों के लिए दिवाकर, अविनीतजनों के लिए भयंकर धनुष और प्रत्यंचा को ध्वनित करनेवाला, अमित अमर्ष के वशीभूत, त्रिजग में प्रसारित यश वाला, अपने शरीर से दिशाओं को काला करने वाला, नाग के समान असमान्य विष (देष) वाला, ऋद्ध यम के सदृश, आग के समान विलसित शिखा वाला, महीतल को थरथराने वाला, ध्वज से नभ तल को ढकने वाला, हाथ में हथियार धारण करने वाला, प्रबल बल से शत्रु को रण में जीतने वाला, दृढ़ और स्थूल बाहों वाला, शत्रु-योद्धा का मद हरने वाला,
पत्ता-त्रिभुवन का संतापदायक रावण ऋद्ध होकर राम के सम्मुख इस प्रकार दौड़ा जैसे नवमेघ मेघ के ऊपर, सिंह सिंह के ऊपर और दिग्गज दिग्गज के ऊपर दौड़ता है।
तब हाथी की सूंड के समान हाथ से जिसने प्रत्यंचा और धनुष मंडल खींचा है, तथा स्वर्ण बाणों को पुखकांति से जिसके मणिमय कर्णकुंडल रंजित हैं, ऐसा इन्द्रजीत, इन्द्र के समान जिसने सैकड़ों दुःख रूपी वृक्षों को उखाड़ डाला है ऐसे लक्ष्मण से, वृक्षध्वजी किष्किधा-निवासी बालि के केठ रूपी प्ररोह (अंकुर) के लिए यम-पाश के समान, स्निग्ध और अपने कुल रूपी भवन के प्रदीप सुग्रीव से कुंभकर्ण भिड़ गया। मही और महीधर के संचालन में बलवान् वीर
(6) [ AP रणियधणुगुणरयो। 2. A थियकरो। (7) I. A °मंडणो। 2. P 'पुंछरुइ