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[76.4.13
महाकाल मान विरभित महापुराण पत्ता--झिज्झइ चंदु जइ तो सायरजलु ओहट्टइ ॥
पडिवण्ण गुरुहुं आवइकालि ण फिट्टइ ।।4।।
मलयमंजरी-जइ वि णिच्चवको देहए ससको तो वि एस चंदो।।
सायरस्स छुट्टो माणसे पइट्टो कतियाइ रुंदो॥छ।। हउ पुणु खलु चुक्कत मज्जायहि बंधुवइरि कि जायउ मायहि । इय जूरंतु जाम णहि वच्चइ
ता रामहु विसारि संसुच्चइ। देव विहीसणु दसणु भगइ
तुह चरणारविंदु ओलग्गइ।। पेक्ख पेक्खु णहि आयउ वट्टा जिह पडिवण्णु णेहु गोहट्टइ। तिह हरि करि तुहुं बेणि विपत्थिय तेण दसासवित्ति अवहत्थिय । ता रामें सुग्गीवहु पेसणु
दिग्णउं आणहु तुरिउ विहीसणु । गय ते तहि सो वि सुपरिक्खि: णिरु णिभिच्च भिच्चु ओलक्खिउ। आणेप्पिणु दाविउ हलधारिहिं पणविस दाणविंदकुलवइरिहि । 10 ते संमाणिउ रावणभायरु
कित संभासणु सहरिसु सायरु । घत्ता-चित्तु चित्ति मिलिउ जगि पर वि बंधु हियगारउ ॥
बंधु जि पर हवइ जो णिच्चु जि वड्ढियवइरउ ॥ १॥ धत्ता–यदि चन्द्रमा क्षीण होता है, तो समुद्र का जल कम होता है। बड़े लोगों को स्वीकृति (शरण) आपत्तिकाल में नष्ट नहीं होती।
(5) यद्यपि यह हमेशा वक्र रहता है, इसके शरीर में शशांक है फिर भी यह चन्द्र है, सागर का इष्ट, मानस में प्रविष्ट और कांति से सुन्दर।
परन्तु मैं दुष्ट हूँ। मर्यादा से चूका हुआ, एक ही मां से पैदा हआ मैं भाई का शत्र कैसे हुआ? इस प्रकार पीड़ित होता हुआ जब वह आकाश में जा रहा था कि इतने में दूत राम के लिए सूचना देता है हे देव, विभीषण आपके दर्शन चाहता है, वह आपके चरणों से आ लगा है। देखिए देखिए वह आकाश में आया हुआ है। जिस प्रकार स्वीकार किया प्रेम कम नहीं होता, उसी प्रकार लक्ष्मण और आप दोनों को उसकी प्रार्थना स्वीकार हो। उसने रावण की वृत्ति का तिरस्कार किया है । तब राम ने सुग्रीव के लिए आदेश दिया कि विभीषण को शीघ्र ले आओ। वे लोग वहाँ गए और उन्होंने उसकी खूब परीक्षा ली और उसे अत्यंत निर्भीक व्यक्ति पाया। लाकर, उन्होंने राम से उसकी भेंट करवाई। उसने दानवेन्द्र कुल के शत्र को प्रणाम किया। उन्होंने (राम ने) भी शत्रु के भाई का स्वागत किया तथा हर्ष और स्नेह के साथ उससे बातचीत की।
धत्ता-वित्त से चित्त मिल गया। दुनिया में हित करने वाला पराया भी अपना बंधु हो हो जाता है, और नित्य शत्रुता बढ़ाने वाला भाई भी दुश्मन हो जाता है। 12 A सापरु बलु । 13. P adds dि after कालि ।
(5) AP करि हरि! 2. AP तहि जि सो।