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महानि पन्त विरमित महापरण
[77.2.11 सा राएं विज्जादेवयाउ
णिज्झाइयाउ णिहियावयाउ। आयाउ' ताउ पंजलियराउ
पेसणु महंति पणमियसिराउ । धत्ता-भणु दसकंधर धरणिधर हरहुं जीउ अरिवरहु सणामहे ।।
अम्हइं बलवंतहं हरिबलहं तसर्जु णवर रणि लक्खणरामहुं ।।211
हेला-ता भणिय महेसिणा जाह जाह तुम्हे ।।
णिय भयजुयसहायया संगरम्मि अम्हे ।।छ।। सक्कहुं सीरिहि लच्छीहरासु कि वसणि दीणु भण्णइ परासु । एत्तहि इंदइ अभिडिउ ताह मायावियाहं साहामया। आवट्टर लोदृश् जायमण्णु संघट्टइ फुट्टइ वइरिसेण्णु । दरमलइ थोट्टदुग्घोट्टथट्ट'
सूडइ विसट्ट पडिभडमरट्ट। परिखलइ वलइ हगु भणइ हणइ
उल्ललिवि मिलइ रिउसिरई लुणइ । रुभइ थंभइ तरवारिधार णिणइ' विहुणइ पवरासवार । सीसक्कइ फोडइ तडयडत्ति मुसुमूरइ छत्तई कसमसंति । असिवरई खलंतई खणखणंति कडियलकिकिणित झुणुझुणंति । 10
पइसरइ तरह कीलालवारि पडिवक्खहु पाडइ पलयमारि'। (रावण) ने आपत्तियों का नाश करनेवाली विद्याओं का ध्यान किया। अंजलियां बांधे हए वे विद्याएँ आईं, और सिर से प्रणाम करती हुईं आज्ञा की प्रशंसा करने लगी (मांगने लगी)।
__पत्ता- हम लोग केवल प्रसिद्ध लक्ष्मण और राम की सेनाओं से युद्ध में डरते हैं । हे राजन्, बताओ किस महाशत्र के जीव का अपहरण करूँ?
तब दशानन ने कहा, तुम लोग जाओ-जाओ। अपनी दोनों भुजाएँ हैं, जिनकी सहायता से संग्राम में मैं ऐसा हूँ। क्या संकट में लक्ष्मी को धारण करने वाले लक्ष्मण और राम से दीन वचन कहे जाएँ ? यहाँ इन्द्रजीत उन मायावी वानरों से चिढ़ गया। ऋख वह शत्रुसेना को घुमाता है, चूर-चूर करता है, उससे भिड़ता है और नष्ट कर देता है, समर्थ और दुर्धर छटा को कचल देता है। विशिष्ट शत्रुसेना के गर्व का नाश कर देता है। परिस्खलित होता, मुड़ता, मारोमारो कहकर मारता, उछलकर मिल जाता और शत्र ओं के सिर काट डालता। तलवार की धार को रोक देता और स्तंभित कर देता। प्रबल घुड़सवारों को नष्ट कर चूर-चूर कर देता। तड़-तड़ कर शिरस्त्राणों को तोड़ देता। कसमसाते छत्रों को चूर-चूर कर देता। गिरती हुई तलवारें खनखनाने लगती हैं, कटितलों की किकिगियो रुनझुन करने लगती हैं। वह रक्त के जल में प्रवेश करता और तिर जाता। शत्रु-पक्ष पर प्रलय मारि मचा देता। अपने गर्व का निर्वाह 6.A वणदेवयाउ । 7. P आइयउ । 8. P तसहुं धरणे सहुँ लक्खण' ।
(3) 1. A 'दुग्धट्ट । 2. AP साडइ। 3. AP पडिखलइ। 4. णिहणइ। 5. AP खलखलंति । 6.AP किकिणियउ मणरुणप्ति । 1.A पश्यमारि ।