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सत्तहत्तरिमो संधि
वणु भजिविः पुरवरु णिड्डहिवि हणुइ णियत्तइ जयसिरिकामें 14 जज विदि स्वयरवद पमिछाउ एम विहोसणु रामें ॥ध्र वका
हेला-सो तेलोक्ककंटओ' सहइ कि पराणं ।
धणुगुणरववियंभियं विलसियं सराणं ॥छ। ता भणइ विहीसणु भयणिरीतु जइ गिरिवरकंदरि वसई सीहु । तो करि कुरंग कि तहि चरंति कायर तह गंधेण जि मरंति। महिवई कहि जइ होंतु देव जीवंत एंति तो भिच्च केंव। तें जाणिउं" तुहुं वालिहि कयंतु रइवइसुग्गीवसहायवंतु। जसु भाइ अणंतु अणंतधामु
सो विज्जइ विणु कहिं जिणमि रामु। इय चितिवि होइवि सुइसरीरु इंदइ णियरक्ख' करेवि धीरु। 10 आइच्चपायमहिहरि दसासु थिरु विरएप्पिणु अट्ठोववासु। अच्छइ विज्जासाहणपयत्तु
णेरंतरु झाणारूढचित्तु। सतहत्तरवीं संधि
बन को भग्न कर, पुरवर को जलाकर हनुमान के निवृत्त होने पर, विजयश्री की कामना रखने वाले राम ने विभीषण से इस प्रकार पूछा कि विद्याधर आज भी क्यों नहीं आया?
त्रिलोक के लिए कंटक स्वरूप वह दूसरों (शत्रुओं) के तीरों सहित धनुष-प्रत्यंचा के शब्द से विकसित चेष्टा को क्या सहन कर सकता है ? तब निष्पह विभीषण कहता है, कि यदि भय से निरीह सिंह गिरिवर की गुफा में निवास करता है तो क्या हाथी और हरिण वहाँ विचरण कर सकते हैं ? वे कायर तो उसकी गंध से ही मर जाते हैं । हे देव, यदि राजा लंका में है तो अनुचर जीवित कैसे लौट सकते हैं ? उसने जान लिया कि तुम बालि के लिए यम हो, तथा हनुमान् और सुग्रीव तुम्हारे सहायक हैं। जिसका भाई लक्ष्मण अनंतधाम है ऐसे उस राम को मैं विद्या के बिना कैसे जीत सकता है। यह विचार कर तथा पवित्र शरीर होकर, बीर इन्द्रजीत को रक्षक बनाकर रावण आदित्यपाद पर्वत पर आठ उपवास कर विद्याओं की सिद्धि में प्रयत्नशील तथा
(1) L P भुजिवि । 2. हणुणियत्तइ । 3. तिल्लोक्क; P तइलोक्क" 1. 4. A तहि किम चरति। 5. AP बइ महिवइ. लकहि होंतु । 6. P तो जाणि। 7. AP णियरवणु करिवि । 8. P 'साहणि ।