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77.2. 10]
महाका-पुप्फयंत-चिरइयर महापुराणु तं णिसुणियि आत्ताहवेण विज्जाहर पेसिय राहवेण। धाइय ते दुखर विरघकारि
लमुसलसवालतिसूलधारि। घत्ता–णहि जाइवि दिणयरचरणगिरि मायावाणरेहि कयराबहिं ।।
वेदिउ विस व जलहरहि गज्जणसीलहिं दरिसियचावहि ।।।।
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हेला-धोरणीलवण्णया छण्णगयणभाया ।।
आहूया घणाघणा सुक्कधीरणाया' ॥छ।। वाओलिवुलिबलधयारु'
गडगडियः पडिय पाहाणफारु । णिवडिय तष्डि फोडिय गिरिखयालु बरिसाविउ तक्खणि मेहजालु। जलु' थलु महियलु जलभरिउ सयलु पइ ढोइउ आयसबलयणियलु । दरिसिउ मंदोयरिकेसगाहु
भडु कुंभयष्णु फणिबद्धबाहु। बंधवसिरकमलई तोडियाई
बच्छयलई विउलई फाडियाई। कुखउ दसासु झाणाउ ढलिउ
कहि चंदहासु पभणंतु चलिउ। इंदछणा कहिउँ खगेसरासु
परमेसर खगमायाविलास । णीसेसु वियंभिउ एह ताव
तुहं णिययणियमपन्भठ्ठ जाव। 10 ध्यान में निरन्तर आरूढ़चित्त होकर स्थित है । यह सुनकर युद्ध को प्रारंभ करने वाले राघव ने विद्याधर भेजे । विघ्न करने वाले एवं मूसल, तलवार और त्रिशूल धारण किए हुए दुर्धर विद्याधर दौड़े गये।
धत्ता--आकाश में जाकर कोलाहल करते हुए मायावी वानरों ने आदिवापाद गिरि को उसी प्रकार घेर लिया जिस प्रकार इन्द्रधनुष का प्रदर्शन करते हुए गर्जनशील मेघों के द्वारा विध्याचल घेर लिया जाता है।
भयंकर और नीले रंगवाले आकाश भांग को आच्छादित करने वाले, धीर शब्द करते हुए वे धनीभूत मेघ हो गए।
चक्रवात की धूल से जिसमें बहल अंधकार है, ऐसे पत्थरों (ओलों) से प्रचुर मेघ गडगडा कर बरसने लगे। बिजली गिरी और विघटित हो गई। मेघ ने तत्क्षण मेघजाल की वर्षा की। जल थल महीयल समस्त जल से भर गए। मंदोदरी के परों में लोहे की शृखला डाल दी। फिर दिखाया मंदोदरी के बालों का पकड़ा जाना और कुम्भकर्ण के हाथों को साँपों से बांधा जाना । भाईयों के तोड़े गए सिरकमल और फाड़े गए विशाल वक्षस्थल । (यह देखकर) दशानन ऋद्ध हो उठा। ध्यान से टल गया। चन्द्रहास कहाँ है ? यह कहता हुआ चला। इन्द्रजीत ने विद्याधर राजा से कहा-हे परमेश्वर, यह विद्याधरों को माया का विलास है । यह समस्त फैलाव (माया का) तब तक के लिए है जब तक तुम अपने नियम से भ्रष्ट नहीं होते। तब राजा ने 9. A सबाणतिसूला
(2) 1. AP'वीर। 2. P वाउधूलियत्रहलं । 3. गयघडिय' । 4. P मोहजालु । 5. A जलथलणहपल अलभरिय ।