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महाक - पुष्कत विरइयज महापुराणु
पत्ता -- फेडियमुहवडघुयध्यवडहं दावियद्सह्गय घडघायहं ।। दलट्टियरिवरभडधडहं मुसुमूरियसामंतणिहायहं |12||
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हेला - विज्जाबलरउद्दहं जायगारवाणं ॥ वाहिय रहविमद्दहं सद्दरजरवाणं ||छ ||
जयकारियराहव रावणाहं समुह गया सपसाणा सं असिणिहसणसिहिजालउ जलंति' णीवंति ताई वणरुहजलेण मुक्कु पिपिफारु गंडयल विलग्गज बाणपुंखु केण वि गणंगणि देवि करणु लो आरोहु बिद्धकोह अरिणरकरघल्लिय लउडिदंड " मणिजडिय पडिय मंडलियमउड
घत्ता- - जिन्होंने मुखपटों और उड़ते हुए दुःसह गज समूह को द्रवित कर दिया है, जिन्होंने दिया है और सामंत समूह को कुचल दिया है.
जयलच्छ्रिरमणरंजियमणाहं । अंत कराहणाहं । गुडपवखरपल्लाई जलति । hrfa सिवि वि छलेण । लग्गउ" णं गथवर गिरिहि मोरु । दोसइ णं छप्पउ दाणकंखु 1 afriratna fre थविवि' चरणु । छुरिय" पणिवि धित्तु जोहु । चूरिय संदण संगामचंड' । उच्छलिय रयणकरणियर पथड ।
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ध्वजपटों को नष्ट कर दिया है, जिन्होंने अश्ववरों और योद्धा समुह को चकनाचूर कर
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जो विद्याबल से भयंकर हैं, जिन्हें गौरव उत्पन्न हुआ है, जो हाँके गए रथों से विमंदित हैं, जो शब्द करते हुए वाणों से भयंकर हैं,
जिन्होंने राम और रावण का जय-जयकार किया है, जिनका मन विजयलक्ष्मी के साथ रमण करने से रंजित हैं, आमने-सामने आई हुई, प्रसाधनों से युक्त युद्ध करती हुई ऐसी दोनों सेनाओं के तलवारों से उत्पन्न अग्निज्वालाएँ जलने लगती हैं, गजों और अश्वों के कवच जलने लगते हैं। उन्हें घावों से निकलते हुए रक्तजल से शांत किया जा रहा था। किसी ने छल से युद्ध में प्रवेश कर विशाल पुंख वाला तीक्ष्ण शंकु छोड़ा जो इस तरह लग रहा था, मानो गजराज रूपी पर्वत पर मयूर हो। गंडतल पर लगा हुआ तीर पुख ऐसा प्रतीत होता था, मानो दान (मदजल) का आकांक्षी भ्रमर हो। किसी ने आकाश के प्रांगण में करण (आसन) देकर हाथी के कुंभपीठ पर अपना दृढ़ पैर स्थापित कर तथा लौटकर आरोहण करने वाले बद्ध
ध योद्धा को कमर की छुरी से प्रहार कर नष्ट कर दिया। शत्रु मनुष्यों द्वारा फेंके गए लकुटिदंडों ने युद्ध में प्रचंड स्यंदनों को चूर-चूर कर दिया। मणियों से विजटित मांडलीक राजाओं के मुकुट गिर गए। रत्नों का किरण समूह प्रकट रूप में उछल पड़ा। किसी के द्वारा
( 13 ) 1A चलति । 2. A पिच्छ भारु 1 3. A उग्गज । 4. A देवि । 5A करि छुरिय 6. P° दंडि । 7. P " चंडि ।