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17B] महाकवि पुष्पदन्स विरचित महापुराण
[77.12.3 रयणणिम्मवियरयणियरधयभीयरो
विक्कमक्कमियमहिवलयगिरिसायरो। पवणवइस वणजमवरुणवलभंजणो
असुरसुरखयरफणितरुणिमणरजणो। गरलतमपडलकालिदिजलसामलो
सुरहिमयणाहिउच्छलियतणुपरिमलो। कोवगुरुजलणडालोलिजालियदिसो
सरलरसच्छिविच्छोहणिज्जियविसो। वीरपरिहृवपरो रइयरणपरियरो
मुक्कगुणरावधणुदंडमंडियवारो। णिहिल जगगिलणकालो ब्ब ढुक्को सय
छत्तछण्णा महंती जणता भयं। कविणभुयफलिहसलिंदकपावणो
कसणधणकरिवरारुढओ रावणो। असमपरविसमसाहसणिही जिग्गओ
विमलकमलाहिसेयस्स णं दिग्गओ। हरिकरिकमाया हल्लिया मेइणी
रणरुहिरलंपड़ी णच्चिया डाइणी। कुलिसकुडिलंकुरारावलीराइयं
धगधगतं पुरो चक्कमुद्धाइयं । निशाचर-ध्वजों से भयंकर है, जिसने अपने विक्रम से महीवलय, गिरि और समुद्र को आक्रांत किया है। जो पवन, वैश्रवण, यम और वरुण के वल का नाश करने वाला है; जो असुर, सुर, विद्याघर, नाग और तरुणियों के मन का रंजन करने वाला है, जो विघ, तमपटल और यमुना के जल के समान श्याम है, कस्तूरीमृग के समान जिसके शरीर से परिमल उछलता है, जिसने क्रोध रूपी ज्वालावलि से दिशाओं को जला दिया है, अपनी सरल और लाल आँखों की कांति से जिसने वृषभ को विजित कर लिया है, जो वीरों के पराभव में तत्पर है, जिसने युद्ध का परिकर बना रखा है, छोड़ी गई प्रत्यंचा के शब्द वाले धनुषदंड से जिसका कर शोभित है, ऐसा महान् छत्रों से आच्छादित, भय पैदा करता हुआ, अपने चाइफलकों के द्वारा शैलेन्द्र को कॅपाने वाला, काले मेघ के समान महागज पर बैठा हुआ रावण समस्त विश्व को निगलने वाले काल के समान स्वयं वहाँ आ पहुँचा । असम और शत्रु के लिए विषम साहस की निधिवाला वह इस प्रकार निकला मानोविमल कमला (लक्ष्मी) के अभिषेक के लिए दिग्गज निकलाहो।नारायण के हाथी से आहत धरती हिल उठी । युद्ध के रक्त को लालची डायन नाच उठी। उसने कुटिल वांकुरों के समान आराओं को आवलो से शोभित तथा धक-धक करता हुआ चक्र सामने उठा लिया। 2. P धिक्कमाक्कमिय। 3. AP धोर'। 4.Aगलिण।