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77.10.5] महाकह-पृष्फयंत-विराज महापुराण
[175 खुप्पइ" मयथिपिरि करिकवोल भणु कोण विलग्गइ दाणसीलि। महुयरु पडिवक्खीहुयज तासु किं पिच्छे फेडइ चियदिसासु।
10 जंपाणि गवक्खहिं पइसरंतु
पररमणिथणथलि मंद: थंतु । रउ" भावइ महणं बीउ जारु तें छाइउ दहमुहबहुवियाहा। असिसलिलि णिलीणु ण' पंकु होई चमराणिलेण उल्ललिवि जाइ। मउडग्गि पडतु जि कुडलासु धावइ मेहु व रविमंडलासु । मइलइ मंडलियह उरपएसु ढकइ सियहारावलिविलासु। 15 घत्ता–रयमेलज' मइलिबि भुवणयलु कलिकालेण समाणउ॥ करिगिरिवणणिज्जरवियलियहि सोणियजलवाहिणियहि लीणउ ।।9।।
10 हेला-जा कोट्ट पलोट्टियं कवडवाणणेरेहिं ।।
ता रविकित्ति णिग्गओ सहुँ' सकिकरहिं ।।छ।। तओ तेण भूमीससेणाहिवेणं पिसक्कासणुम्मुक्कजीयारवेणं । रहत्थेण सामत्थधत्थाहिएणं तमोह व्व सारंगबिबंकिएणं ।
विहिज्जतकंधच्छिर छिण्णमुडं रसालुखभेरुंडखजंतरंड । मकरंद हो। वह मद से गीले हाथी के गंडस्थल पर जम जाती है। बताओ दानशील व्यक्ति से कौन नहीं लगता ? भ्रमर उस धूल का प्रतिपक्षी (शत्रु) हो गया । क्या वह अपने पंख से दिशामुख में व्याप्त उसे हटाता है ? जंपानों और गवाक्षों से प्रवेश करता, शत्रुओं की रमणियों के स्तनतलों पर धीरे स्थित होता हुआ रज (धूल) मुझे ऐसा लगता है मानो दूसरा जार हो । उसने रावण की पत्नी के विकार को आच्छादित कर लिया। तलवार रूपी जल में लीन बह पंक नहीं होता। चमर को हवा से शिथिल होकर वह चला जाता है। मुकुटों के अग्रभाग पर पड़ता हुआ रज, कुडलों पर इस प्रकार जाता है जैसे सूर्यमंडल पर मेघ जा रहा हो (उसे आच्छादित करने के लिए)। मंडलीक राजाओं के उरप्रदेशों को मैला करता है, उनकी श्वेत हारावलि के विलास को आच्छादित करता है।
घत्ता इस प्रकार रज समूह, कलिकाल के समान भुवनतल को मैला कर, हाथी रूपी पर्वत के वन-निर्झरों (त्रण रूपी झरनों, बन के झरनों) से विगलित रक्त रूपी जल की नदी में लीन हो गया।
(10) जब मायावी वानरों ने दुर्ग को ध्वस्त कर दिया तो (रावण का) सेनापति अर्ककीर्ति अपने अनुचरों के साथ निकला। तब रथ पर स्थित उसने, जिसमें भूपतियों के सेनाधिपति हैं, जिसमें धनुषों की प्रत्येचा का शब्द किया जा रहा है, जिसमें कंधे और सिर छिन्न हो रहे हैं, मुंड कट चुके हैं, रस के लोभी भेरुण्ड पक्षी धड़ खा रहे हैं, जो झूलती हुई बातों से झरते हुए रक्त से आरक्त 10. P मा खुप्पइ। |1. P करिकणेलि। 12. A को विण लग्गह। 13. A मंदु। 14. A ण भावा । 15.Pण मह। 16.A वहमुहमुहथियारु। 17.AP | 18. "गिरिवरणिकार।
(10) 1. AP सह । 2. A धम्माहिएणं । 3. सारंगचिंधकएणं । 4.A णनिहरं । 5. A तुर्ड।