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[77.8.11
महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण खगधायविच्छिण्णसीसयं हुंकरतभूभंगभीसयं कोंतकोडिसंघट्टपेल्लियं
वणगलंतकीलालरेल्लियं। विचलियतगुप्तचरणय
ह्यगयाराणीदिण्णकरणयं । धत्ता-विराहवरामणमय सीयाकारणि अमरिसपुण्णई॥
अभिट्टई गिरितरुवरकरई मायावाणरणिसियरसेपणइं॥॥
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हेला-झसमुग्गरमुसंविहि णिहयरवरंगं॥
जायं दंडसंजुर्य दूरमुक्कभंग ॥छ।। रहिएहि रहिय तुरएहि तुरय रणि रुद्ध एंत दुरएहिं दुरय। पायालहिं बरपायाल खलिय कमसंचालेण धरित्ति दलिय। हरिखुरखणित्तखउ णं मरंतु उट्ठिउ धूलीरउ पय धरंतु । आयासचडिउ' गं पुह इप्राणु' संताविर तें पिहिउ भाणु। चवलेण सुद्धवंसहु कएण
णिवडतु णिवारिउ णं धएण। दोसइ पंडुरु* कविलंगु केव
छत्तारविदि मयरंदु जेव।
हैं, जो हुंकार करते हुए भूभ्रमों से भयंकर है, जो कोत परम्परा के संघट से प्रेरित है, जिसमें घावों से रिसते रक्त की धाराएँ हैं, जहाँ गिरी हुई आँतों में पैर उलझ रहे हैं, तथा अश्व और गजों के आसनों पर शस्त्र रखे हुए हैं ऐसा सैन्य निकल पड़ा।
पत्ता-जिन्होंने राघव और रावण के चरणों में प्रणाम किया है, जो अमर्ष से भरी हुई थीं, गिरि तथा तरूबर जिनके हाथों में हैं, ऐसी मायावी वानरों और राक्षसों की सेनाएँ सीता के कारण युद्ध में भिड़ गई।
झस, मुद्गर और मुसंढि शस्त्रों के द्वारा जिसमें थेष्ठ मनुष्यों के अंग आहत हुए हैं तथा जो विघटन से मुक्त है, ऐसा दंडयुक्त युद्ध हुआ।
रथिकों (सारथियों) से रथिक, तुरगों से तुरंग और गजों से गज आते हुए अवरुद्ध कर लिए गए। पैदल सैनिकों के द्वारा पैदल सैनिक स्खलित (पराजित) कर दिए गए। परों के संचालन से धरती दलित हो गई। घोड़ों के खुरों रूपी खनित्रों द्वारा खोदा गया धूल समूह पैरों से लगता हुआ उठा मानो आकाश में जाते हुए पृथ्वी के प्राण हों। संतापकारी होने से उस धूल ने सूर्य को ढक लिया। शुद्ध वंश के कारण, चंचल ध्वज ने (अपने ऊपर) जमती हुई धूल का निवारण किया। सफेद और कपिल अंगवाली वह ऐसी लगती है जैसे छत्रों रूपी अरविन्दों का
7. P भीमयं 1 8. AP विलियंत। 9. P गयसिणी।
(9) 1. A झसमुसलमुसुडिहिं णिहिय । 2. A रहएहिं । 3. AP यंत। 4. AP संचारेण । 5. A णं खउ मरंतु। 6. AP आयासि बडिउ । 7. AP पाणु । 8. A संताउ करंतु विणिहिउ भाणु; Pसंताव करतें पिहिउ पाणु19. Pपंडुर।