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महाकवि पुष्पवन्त विच महापुराण
अवर वि आया मायाणिसियर कुडिल बद्धगच्छर इच्छिय कलि गुंजापुंजरत्तणेतुब्भड दीदी जीहावललालिर ताहे रणगणि दावियमंडहिं सरपुर्खाह भमरेहि' व मंडिय जिह वेल्लिउ हि अंतई छिपाई जिह तालई तिह रिजसीसई जिह उज्जाणहु णट्टई चक्कई जिह सर तिह विद्ध सिय रिउसर घरि घरि चडिय जलंतहि पुछहिं दड्ढई णायरभवणसहासई
ass तर्कपणकर | जलियजलणजाला केसावलि । दाढाचंडतुंड पललंपड | परबलबोलिर हूलिर सूलिर । लग्गा बलिमुह गिरिसिलबंडहिं । जिह्वणि तर ति ते रणि खंडिय । जिह पत्त सिंह पत्तई भिण्णई । पाडिया धरणीयलि भीरुई । तिह रिजरवरि भगई चक्कई । लंकारि पट्टा वाणर । णीसारियउ जणु पिंगच्छहि ।
जालाहार व ब्राहामीसई ।
[76. 8. 3
घत्ता - लग्गउ वरिपुरि हुयवहु हणुवंतें वित्तउ ।। राहको सहि णं दुष्णयतणेण पलित्तर ||४||
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वाले अनेक राक्षस मारे गए और अनेक भाग खड़े हुए। दूसरे मायावी निशाचर लकुटि-मुसुंडीकोंत से काँपते हुए हाथवाले, कुटिल मत्सर से भरे हुए, लड़ाई की इच्छा रखनेवाले, जिनकी केशावली आग की ज्वालावली से जल रही थी, जो गुंजाफल के समान लाल-लाल नेत्रों से उद्भट थे, दाँतों से प्रचंड मुखवाले, मांस के लंपट, लम्बी-लम्बी लपलपाती हुई जीभवाले, शत्रु सेना में चक्कर देने वाले, शूल वाले और हूलने वाले थे । तत्र युद्ध के प्रांगण में उनके धड़ों को गिराने वाले पहाड़ के शिलाखंडों से सहित वे वानर भिड़ गए। भ्रमरों के समान तीरपुंखों से वे शोभित हो उठे । जिस प्रकार वन में वृक्ष खंडित हो जाते हैं. उसी प्रकार वे युद्ध में खंडित हो गए। जिस प्रकार लताएँ, उसी प्रकार उनको आंतें छिन्न-भिन्न हो गई। जिस प्रकार पत्ते उसी प्रकार उनके वाहन नष्ट हो गए। जिस प्रकार ताड़ वृक्ष के फल, उसी प्रकार शत्रु के भयंकर सिर धरती पर गिरने लगे। जिस प्रकार उद्यान से पशु-पक्षी भाग जाते हैं, उसी प्रकार मात्रओं के श्रेष्ठ रथों के चक्र टूट गए। जिस प्रकार सरोवर उसी प्रकार शत्र ु नष्ट हो गए। वानर लंका नगरी में घुस गए। अपनी जलती हुई पूंछों से वे घर-घर पर चढ़ गए। पीली आंखों वाले उन्होंने आग निकाली और चिल्लाहट से भरे हजारों नागर भवनों को भस्म कर दिया, ज्वालमाला की तरह ।
पत्ता- हनुमान् के द्वारा प्रक्षिप्त आग शत्रुनगरी में जा लगी मानो राघव की कोष रूपी आग अन्यायरूपी ऋण से जल उठी हो ।
2. AP 'तरम्भर 3 AP जीवीह। 4. अमरिहिं णं; P भमरहिण 5 AP एम्बई K पत्त and gloss वाहनानि । 6. A रिज रहे रहे; P रिटं रहवरे ।