________________
[131
74.6.11]
महाका-पुप्फयंत-विरइयउ महापुराणु गोवदमुक्कगुणभागणाह दारियसरीरु सह ससयणहिं।। सोणियजलसित्तछत्तसहिउ" मा होहि कयंतणयपहिउ ।। घत्ता-बोल्लिज लक्खणिण सृय" सीय वसुंधरि ढोयवि।।
जइ दहमुह जियइ. तो जीवड किंकर होइबि ।।5।।
10
हेला-अहया जइ ण देइ तो आइ' किं जियंतो॥
मई कुद्धण हणुय णउ ह्णइ के कयंतो छ।। तेलोक्कचक्करावणह
इय जाइवि साहहि रावणहु । जइ तिणि वि एयउ बेडु णउ तो तासु मह वि किर संधि कउ। जइ जुज्झइ तो कालाणलहु जइ णास इ तो पुणु काणणहु । पेसमि दहगीउ ण दूय जइ
रहुवइपयजुधलु ण णवमि तइ । तो हलि हरि जयकारिबि चलिउ तणुभूसणमणियरसंवलिउ। तारावलिहारावलिउरहि
उत्तु गहि तुंगपयोहरहि। पविमलपसण्णदिसवांणयहि चंदक्कमोहरणयणियहि । आहंडलघणुउप्परियणहि
रंजियविज्जाहरगणमणहि । 10 णहलच्छिहि उवरि देंतु पयई पडिसुहडही संजणंतु भयई। के द्वारा डोरी से छोड़े गए तीरों के द्वारा विदारित शरीर के रक्त रूपी जल से सिक्त छत्र से सहित तुम अपने जनों के साथ यम नगर के अतिथि मत बनो।
घत्ता-लक्ष्मण ने कहा-सीता और धरती को लेकर यदि रावण जीवित रहता है, तो वह अनुचर होकर ही जीवित रह सकता है।
अथवा यदि वह सीता देवी को नहीं देता तो क्या जीवित रह सकेगा? मेरे शुद्ध होने पर हनुमान् किस कृतान्त को नहीं मारता?
बिलोक चक्र को सताने वाले रावण से तुम इस प्रकार कहना। यदि वह वे तीनों चीजें ना. श्री और भमि नहीं देता. तो उससे मेरी क्या संधि यदि वह लड़ता है.तो मैं उसे कालान नल में, और यदि भागता है तो फिर कानन में नहीं भेज द तो हे दत, मैं श्रीराम के चरणयुगल को नमस्कार नहीं करूँगा। तब वह लक्ष्मण-राम की जय बोलकर चल पड़ा, शरीर के आभूषणों की मणि-किरणों से घिरा हुआ। जिसके उर पर तारावलियों की हारावलि है, जो ऊँची और विशाल पयोधर वाली है, अत्यन्त विमल और प्रसन्न दिशारूपी मुख वाली है, चन्द्रमा
और सूर्य के मनोहर नेत्रों वाली है, जिसका इन्द्रधनुष का स्तरीय वस्त्र है, और जो विद्याधर समूह के मन को रंजित करने वाली है, ऐसी आकाश रूपी लक्ष्मी के ऊपर पैर रखता हुआ शत्र योद्धाओं को भय उत्पन्न करता हुआ। RAलियंगि । 9.A सह सज्जणेहि। 10. Pomitsछत्त। 1. A सिय: Pसीय ।
(6) 1. P कि आइ। 2. AP हरि हलि । 3. AP 'सुहबहुं णं जणंतु ।