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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
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ता पहुणा पेसिउ तक्खणेण सुग्गीउ चलिउ सह लक्खणेण । साहण पहि' उप्पहि णहिण मान गया मायनस पनि जान । हरि खुरखयरययभाणुदित्ति रह चक्कधारदारियधरित्ति। चूरियभयंग चलविवलियंग भयकंपिय दिसमायंग तुंग। थिउ सिबिरु धरेप्पिणु दुग्णमागु उब्बेइउ सससारंगवणु। आसोसियाई सरिसरजलाई णिल्लूरियाई णबदुमदलाई। सिरणलिणारोहियणियकरण अक्खि उ वालिहि केण बि चरेण । दुखरदीहरसुडालसोंडु
रामें तुम्हुप्परि पहिउ दंडु। पडिबलु गयणयल विलग्गतालि आवासिउ खहरवणंतरालि । पत्ता-सुग्गीवें सेविउ सीरधरु लद्धउ सहयह चक्कवइ ।।
तं णिसुणिवि रूसिवि सण्णहिवि णिग्गउ वालि खगाहिवइ ।।5।।
गंभीरतूरकोलाहलाई अभिट्टई कयरणकलयलाई ववियलियपिच्छिललोहियाई
सुग्गीयवालिखेयरबलाई। सरपसरपिहियपिहुणहयलाई। पय घुलियंतावलिरोहियाई।
तब प्रभु राम ने तत्काल आदेश दिया। सुग्रीव लक्ष्मण के साथ चला। सेना पथ उत्पथ और आकाश में नहीं समा सकी। मद के वशीभूत होकर गजघटा प्रसन्नता पूर्वक जा रही थी। खुरों से आहत धूल से जिन्होंने सूर्य को दीप्ति को आच्छादित कर दिया है ऐसे अश्व थे। चक्र की धारा से धरती को फाड़ देने वाले रथ थे। विकल अंग वाले सांप चूर-चूर हो गए। ऊँचे दिग्गज भय से कांप उठे। दुर्गमार्ग को ग्रहण कर शिविर ठहर गया। शश और हरिण समूह उद्विग्न हो उठा । नदियों और सरोवरों का जल सूख गया। नव द्रुम के पत्ते नोच दिए गए। सिरकमल पर अपने हाथों को आरोपित (लगाते) करते हुए किसी एक चर ने बालि से कहा--राम ने दुर्धर और दीर्घ गजों से प्रचंड सैन्य तुम्हारे ऊपर भेजा है। जिसमें आकाश के अग्र भाग में ताड़वृक्ष लगे हुए हैं. ऐसे खदिर वन के भीतर शत्रुसैन्य ठहरा हुआ है।
__ छत्ता--सुग्रीव ने राम की सेवा अंगीकार कर ली है और चक्रवर्ती लक्ष्मण को सहचर के रूप में प्राप्त कर लिया है --यह सुनकर ऋद्ध विद्याधर राजा बालि तैयार होकर निकला।
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गंभीर तुर्यों का कोलाहल होने लगा। नुग्रीव और बालि विद्याधरों के सैन्य भिड़ गए। युद्ध का कोलाहल होने लगा। तीरों के प्रभार से दोनों ने विशाल आकाशतल आच्छादित कर दिया। दोनों सैन्य घावों से रिसते गाड़े खून से लाल हो गए। दोनों पैरों में व्याप्त आंतों से
(5) 1,P उपहि पहि! 2. AP णं णहि विलग साहणसुकित्ति । 3. AP पलवलियअंग । 4. P जन्वेया। 5. AP दोहरदुद्धर। 6.AP सणिहिति ।
(6) I. A आभिट्राई । 2.A'विहलिय" ।