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चउहत्तरिमो संधि
परहु ण देइ मणु अवसें मउलइ सकलंकहो।। फुल्लइ पउमिणिय करफंसे कहिं मि मियंकहो ।।ध्र वकं ।।
हेला–सीयादेवि देव दीहुण्ह णीससंती।।
सुंअरइ तुह पयाई भत्तारभत्तिवंती॥छ।। सिरि व उविदह सरि व समुहहु। मेत्ति व णेहह. मोरि व मेह्ह । भमरि व पोमहु संति व सामहु। करिणि व पीलुहि करहि व पीलुहि। विउसि व छेयहु हरिणि व गेयहु। णववणकतहु
जेंब वसंतहु। सुअरइ कोइल धीरत्ते इल। जिणगुण' जाणइ तिह तुह जाणइ।
चहत्तरवीं संधि
(कमलिनी सीता) दूसरे के लिए मन नहीं देतो। वह संकलक (चन्द्रमा और रावण) से अवश्य ही मुकुलित होती है। क्या चन्द्रमा के करस्पर्श से कमलिनो कभी भी खिल सकती है।
हे देव, लम्बे और उष्ण उच्छ्वास लेती हुई तथा पति के प्रति भक्ति से ओत-प्रोत सीता देवी तुम्हारे चरणों को याद करती हैं, जिस प्रकार लक्ष्मी उपेन्द्र की, जिस प्रकार नदी समुद्र की, जिस प्रकार मंत्री स्नेह की, मयूर मेघ को, भ्रमरी कमल की, जिस प्रकार शान्ति साम को, जिस प्रकार हथिनी हाथी की, जिस प्रकार ऊंटनी पील वृक्ष की, जिस प्रकार विदुषी चतुर व्यक्ति की, हरिणी गेय की तथा कोयल नवीन वन से मनोहर वसन्त की याद करती है, धैर्य से जिस प्रकार बह इला और जिन गुण को जानती है, उसी प्रकार जानकी तुम्हें जानती है।
(1) 1. A मयंकह । 2 P adds after this : महि व हिंदहु, सइ व सुरिबहु । 3. A मित्तय । 4. A सोमहु । 5. AP हिरि व सुसीलहि । 6. APणवबहुकंतहु । 7. AP read a as b and basur