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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
घत्ता - परवस परमसइ जइ छिवमि करें थणु पेल्लियि ॥ अंबरयारिणिय तो' जाड़ विज्ञ मंहं मेल्लिवि ॥ 8 ॥
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झावि पंककरिहि
जीवrag भावहु कह वितिह ता तरलइ तारइ णाइणिइ अविरल अंबर अंबालियइ मंद कप्पूरपूरपरिमलजलई' सीहि अंगगि रमति किह णियपत्थियपेमणकारिणिहि दहमुहदाइणि कालणिह उट्टिय परणरणिट्ठरहियय
पत्ता- हा रसप हा लक्खण कहिं पई पेच्छमि 11
आसु दिष्णु विज्जारिहि । म इच्छ सुंदर अज्जु जिह् । चंपयमालइ मंदाइणिइ । मयमत्त मल्हणसीलियइ । रहद' चंद चंदिणिइ । पल्हत्थियाई हिमसीयलई । fret रहुब अंगाई हि । लहु विज्जिय चामरधारिणिहि । संकिय णं खयजलण सिह । संचित हा हउं कि ण मय ।
दावहि तव मुहं जावज्जु जि मरवि' ण गच्छमि ॥9॥
[72. 8. 13
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धत्ता - यदि मैं परमसती परवश सीता के स्तनों को हाथ से दबाकर छूता हूँ, सो आकाशगामिनी विद्या मुझे छोड़कर चली जाएगी ।
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अपने मन में यह विचार कर उसने कमल के समान हाथों वाली विद्याधरियों के लिए आदेश दिया --- उसे इस प्रकार जिलाओ और मनाओ कि वह आज किसी प्रकार मुझे चाहने लगे । तब तरला, तारा, नागिनी, चंपकमाला, मंदाकिनी अविपुला, मदमत्त प्रसन्न स्वभाव वाली अंबा अंबालिका, प्रिय स्वभाव वाली नन्दा नंदिनी, रति से सुन्दर चन्दा और चांदनी के द्वारा छोड़ा गया कपूर के पूर से सुवामित, हिम के समान ठण्डा जल सीता देवी के अंगों पर इस प्रकार कीड़ा करता है, जैसे राम का अंग हो। अपने राजा की आज्ञा मानने वाली चामरधारिणी दासियों ने जब हवा की तो, रावण के वध को करने वाली वह काल के समान प्रलय की आग की ज्वाला की तरह जल उठी। परपुरुष के लिए कठोरहृदय सीता अपने मन में सोचती है - मैं मर क्यों नहीं गई ?
धत्ता - हे रघुवंश के स्वामी (राम) हे लक्ष्मण, मैं तुम्हें कहाँ देखूं, मेरे मरने तक तुम अपना मुँह दिखा दो ।
8. Patजाइ बिज्जू ।
(9) 1. A कह व 1 2. AP अमलोहय अंब वालियए । 3. AP रुइदद्द 4. AP कप्पूरपजर' । 5. A पई कहि पेच्छमि । 6. AP मरेवि ।