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महाकइ पुम्फत विषय महापुराण
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विज्जाहरु णामें अस्थि पवणु तहु अंजण मणरंजणवियार
दुबई - सुणि रायाहिराय हे हलहर मणिमयसिहरमंदिरे ॥ तित्थु जि रययसिहरि खगसेढिहि खणरुइकंतपुरवरे ॥ छ ॥ लीलाणिहि वैयविजित्तपवणु । महवि बूटसिंगारभार । ...हे व गविभ महासईहि । जगि बुच्चइ एह जि मयरकेउ । एए दिणी बिज्जापरिक्ख । today for उडवाउ गयगण ससि दिवसयरु जाम । अमेr मिलिवि खपरेहिं वुत्तू | वाले महु दिण्णउं जज्रवरज्जु" । आसंकिवि तें सहुंण किउ रणु वि। संमेयजिणा सिद्ध ।
ड्ड सहाय गह पंड पहु भडु विज्जाणिकेउ एक्कहिंदिणि कोक्कवि खयरलक्ख गिरिसिहरि णिवेसिउ एक्कु पाउ दीga पसारि गयउ ताम पुणु रूबु धरिउ तसरेणुमेस्
विहायसाहस अभेज्जु
कालें तें तं हित्तु पुणु वि गय श्रेणि विजण माणवकचूड
घत्ता - तसथावरजीवहं दय करिवि धम्मि थवेष्पिणु अप्पर ।। तहि देहिदेह दुहणासयरु बंदिउ जिणु परमप्पउ || 8 |
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दुबई -- हे राजाधिराज, हे हलधर सुनिए, वहाँ ही विजया पर्वत की विद्याधर श्रेणी के मणिमय शिखर मंदिर वाले विद्याधर विद्युत्कांत नगर में पवन नाम का विद्याधर है । अपने वेग से पवन को जीतने वाले उसकी लीलाओं की निधि और मनोरंजन के विचार से युक्त श्रृंगारभार धारण करने वाली अंजना नाम की महादेवी थी । गजगामिनी उस महासती के गर्भ से उत्पन्न यह मेरा सहचर है-चतुर पंडित और भटविद्या निकेत । विश्व में इसे कामदेव कहा जाता है। एक दिन एक लाख विद्याधरों को बुलाकर इसने विद्याओं की परीक्षा दी। पहाड़ के शिखर पर इसने एक पैर रखा और दूसरा उद्दंड पैर आधा लम्बा फैलाया। वह वहाँ तक गया, जहाँ तक आकाश के आँगन में सूर्य और चन्द्रमा हैं । फिर उसने अपना रूप दूसरेणु तथा अणु वरावर यनाया। विद्याधरों से मिलकर उसका अमेय स्वभाव और साहस देखकर बालि ने मुझे युवराज पद दे दिया। लेकिन समय बीतने पर उसने अपहरण कर लिया। आशंकित होकर हमने उसके साथ युद्ध नहीं किया। हम दोनों, जिसके शिखर माणिक्य के हैं ऐसे, सिद्धकूट समेदजिनालय गये ।
घत्ता --- वहाँ सस्थावर जीवों की दया कर और अपने आपको धर्म में स्थापित कर शरीरधारियों के शरीर के दुःखों का नाश करने वाले परमात्मा जिनदेव वंदना की ।
( 8 ) IA रमणिगणदित्तमंदिरे P रमणियसियमंदिरे 1 2 Padds वि after अक्कु । 3. A जुजविरज्जु; P जुजवरज्जु ।