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महाकवि पुष्पधन्त विरचित महापुराण
दूरस्थ विगाढ देवि खेम् मणवासिणि दहरह रायसुम्हि "
नियकुसलवत्त हुई कहमि रामु । लइ सब्बु चारु सरयंदजोहि । पत्ता - धीरी होज्जसु हलि जणयसुए भइरणरंगि भिडेप्णुि ।। dear हुं महुं बंधविण दससिरसी खुडेष्पिणु ॥ 271
[73. 27. 13
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तूसेप्पणु सीयइ अदुईउ कइ पुच्छिउ लंघियविउलखयलु विष्णविय देवि लइ भत्तु पाणु तं तासु वषणु पडिवष्णु ताइ सोयासुंदरिहि खगोयरीइ अइरावयलीलागामिणीहि पहत्थियाई तत्तई जलाई freकुलु विडइणुि हृयासु" तिलमुक्के तेल्लें मुक्क केस
दुवई - अणुदिणु लच्छिणाहु पदं सुमरइ तसिय कुरंग लोयणे ।। झावि जिगसामि णिवसिज्जसु कइवय दियह परयणे ॥ ताकर अंगुलियहि अंगुलीउ । तेण वि अभिख वित्तंलु सयलु । विणु तेण ण थक्क यत्राणु । पावणि सूरुाम पहाइ । उवयरिजं चारु मंदोयरी३ । मज्जणउं भरिडं खगकामिणीहि । कि तावियाई जह णिम्मलाई । कहखमः विवक्खहि जनियतासु । वि तिलसंबंध हि वि वेस' ।
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देवी, मेरा प्रगाढ़ आलिंगन है। मैं राम अपनी कुशलवार्ता कहता हूँ । मन में बसने वाली हे दशरथ राज की बधू, शरद की चांदनी में सब सुन्दर होगा ?
धत्ता -- हे जनकसुते, तुम्हें धैर्य धारण करना होगा, योद्धाओं के युद्धरंग में भिड़कर, रावण का सिर काटकर, मेरे भाई के द्वारा लाई जाओगी ।
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हे त्रसित हरिण के समान नेत्र वाली, लक्ष्मण तुम्हें दिन-रात याद करता है, त्रिजगस्वामी का ध्यान कर कुछ दिन तुम शत्रुजनों में निवास करो ।
तब सीता ने संतुष्ट होकर, उस अद्वितीय अंगूठी को अपनी अंगुली में पहिन लिया और विशाल आकाशतल को पार करने वाले वानर से पूछा। उसने भी समस्त वृतांत कह सुनाया । उसने निवेदन किया- हे देवी, भोजन जल ग्रहण करो, उसके बिना मनुष्य के प्राण नहीं ठहरते । उसने उसका वचन स्वीकार कर लिया । सबेरे सूर्योदय होने पर हनुमान् चला गया । विद्याधरी मंदोदरी ने सीता सुन्दरी का सुन्दर उपकार किया। एरावत को चाल से चलने वाली विद्याधर सुन्दरियों ने स्नान कराया। गर्म जल निकाला गया । यदि वह निर्मल है तो जन को गर्म क्यों किया गया ? निर्दय अग्नि अपने कुल को भी जला देती है, तो फिर वह नाम उत्पन्न करने वाले विपक्ष को कैसे क्षमा कर सकता है ? तिन मुक्त तेल से उसने बाल खोले। बिना स्नेह संबंध के 14. A 15 A जुह
( 28 ) 1 A सुअर | 2. A परवणे; P परियणं । 3. P सेपि । 4. AP मणुअपाशु । 5. AP add after this : आहारे अंग अगंगधा, अंगें होतें पुणु मिलइ रामु । 6. A यासु । 7. AP सेस ।