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13.25.8] महाका-पुप्फयंत-दिरइयउ महापुराण
[119 इय भणिवि देवि गय णियणिवासु हियवउ हरिसिउं अंजणसुयासु। महिवइभिच्चहं घल्लिवि रउद्द चेयण चप्पंति महंत णिद्द । समरंगणि णिज्जियअरिवरेण लहुं धरिउ वाणरायारु तेण । पत्ता--विहिपहाणाह निरुणरसमाहि मलिणहि मइलियवस्थहि ।। सो सीयहि रामविओइयहि गंडयलासियहत्यहि ।।24।।
25 दुवई-लक्खणु पेक्षमाणु भारहियहि सणियं पयई देतओ॥
ढुक्कइ कइरिंदु तहि णियडइ कइगुण अणुसरतओ॥छ।। पत्तलबट्ट लयरतंबकण्णु णवकणयकंजकिंजक्कवण्णु । सिहिविप्फुलिंगचलपिंगलच्छु णीरोमभउहु लंबंतपुच्छु । ससिकंतिवंततिकखग्गदंतु कयकरजुयलंजलि बुक्करंतु। अवलोइज देविइ पमउ एंतु थिउ अग्गई पयपंकय णमंतु। तेणंबहि दाविउ दइयणेहु सहु अंगुत्थलियइ चित्तु लेहु ।
परमेसरि मई रंजियमणासु परियाणहि पुत्तु पहंजणासु। कामदेव का धाम बनता है। शरीर होने पर राम फिर से मिल सकते हैं । यह कहकर देवी अपने निवास स्थान पर गई। पवन-अंजना के पुत्र का हृदय प्रसन्न हो उठा। महापति (रावण) के अनुचरों को भयंकर नींद देकर और उनकी महान चेतना शक्ति को चांपते हुए, समर-प्रांगण में शत्रुओं को जीतने वाले हनुमान ने शीघ्र वानर का रूप धारण कर लिया।
घत्ता—जिसने स्नान नहीं किया है, जो भोजन से अत्यन्त रहित है, जो मलिन है, जिसके वस्त्र मैले हैं, जो राम से वियुक्त है, जिसका हाथ गंड-स्थल पर आश्रित है, ऐसी सीता
(25) भारती (सीता और कवि की बाणी) के लक्षणों को देखते हुए और धीरे-धीरे पथ (पद और चरण) देते हुए वह कपीन्द्र हनुमान् कई गुण (कविगुण, कपिगुण) का अनुसरण करते हुए उनके निकट पहुंचा।
जिसके कान पतले और एकदम लाल और गोल हैं, जो नव स्वर्ण कमल के पराग के समान रंग वाला है । आग के स्फुलिंग के समान जिसकी पीली आँखें हैं, जिसकी भौहें बिना रोम की है,
और जिसकी पूछ लम्बी है, जिसके आगे के दांत तीखे चन्द्रमा की कांति के समान हैं, जिसने दोनों हाथों से अंजलि बाँध रखी है, जो बुक्कार कर रहा है, ऐसे बंदर को देवी ने आते हुए देखा। चरणकमलों को प्रणाम करता हुआ, वह आगे आकर स्थित हो गया। उसने सीता के लिए पति के प्रेम को बताया और अंगूठी के साथ लेख रख दिया । वह बोला- हे परमेश्वरी, तुम मुझे मन को रंजित करने वाले प्रभंजन का पुत्र, राम का दूत समझो। मेरा नाम हमुमान् है। मैं श्रेष्ठ 5.P रामविल इयहि ।
(25) 1. A सणियह। 2. A टुक्क। 3. P पुछु। 4.AP ससिकंतकति । 5. A ते तहिं। 6 AP दाथिय ।