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महाकवि पुष्पवन्त मिरचित महापुराण
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दुवई - अष्णु वि हरिणणयण णियपणइणि तासु दसासराइणा || विरसियअमरडमडिडिमरवरिउबहुतासदाइणा ॥ छ ॥
जो दाव कंतहि तणिय यत्ति । तिह रामहु होसइ परमबंधु । सो देस तु सुग्गीव रज्जु । जलयग्गिसिंगसंणियिपाय । संभासिय तोसिय माहवेण । जंपिउ णवजलहरणीसणेण । मा झिज्जहि सज्जण कुमुयचंद । हरं आण ि सीयहि तणिय वत ।
दुखेण ण याणइ दिमहु रन्ति सो जाणमि जिह भमरहु सुगंधु लभ मणोज्जकज्जेण' कज्जु सुगवि आया एत्थु राय से शहर पुज्जिय राहण पेण
भो दसरहणंदण णंद गंद णियरामालोयणकयपयत्त
घत्ता- सुरंगी बहु मुहं पप्फुल्लियउं' मित्तवयणु पडिवण्णउं ॥ अहिणाणु ले अंगुत्थलउं रामें हणुयहु दिण्णउं ||
[73. 11. 1
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दुबई- -ता गविडं पयाई हलहेइहि वदलणलिणणिहमुहो || उल्ललिओ' हे पण इव चलगइ पवणतणुरुहो |छ ।
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और भी विशेष रूप से बजाए गए अमरों के लिए भयानक डिंडिम के शब्द से शत्रु के लिए अत्यधिक त्रास देने वाला राजा दशानन उनकी मृगनयनी प्रणयिनी को ले गया है । वह दुःख के कारण दिन रात नहीं जानती। जो पत्नी की वार्ता को बताएगा, मैं जानता हूँ, कि भ्रमर के लिए सुगन्ध की तरह वह राम का परम बंधु होगा। मनोश काम से ही मनोज्ञ कार्य प्राप्त किया जाता है। हे सुग्रीव, वे तुम्हें राज्य दे देंगे। यह सुनकर, हे राजन्, हम लोग यहाँ आये हैं। मेघों के अन शिखरों पर चरण रखने वाले उन विद्याधरों का राम ने सम्मान किया। लक्ष्मण ने बात कर उन्हें संतुष्ट किया 1 आदेश चाहने वाले तथा नवमेघ के समान शब्द वाले हनुमान् ने कहा- हे दशरथपुत्र, तुम प्रसन्न होओ, तुम प्रसन्न होओ। हे सज्जन कुमुदचन्द्र तुम क्षीण मत होभो, अपनी स्त्री के अवलोकन का जिसमें प्रयत्न है, ऐसी सीता संबंधी वार्ता में ले आऊंगा ।
(11) 1 A कज्जाण कज्जू । 2. P तुम्हहं । 3. A पफुस्लियर्ज P पहुल्लियई । (12) 1. I has गड before उल्ललिभो ।
पत्ता - सुग्रीव का मुख खिल गया। उसने मित्र का बचन स्वीकार कर लिया । राम ने पहिचान का लेख और अंगूठी हनुमान के लिए दे दी।
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तब नवदल वाले कमल के समान मुख वाले हनुमान् ने राम के चरणों में प्रणाम किया । पवनगति वह पवनपुत्र आकाश मार्ग से पवन की तरह उड़ गया ।