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महाकवि पुष्पबन्त विरचित महापुराण
[73.21.6 महु दासि वि तुहुं महएवि होहि लच्छिहि एंतिहि कोप्परु म देहि । उरयलु मेरउं लालउ बिसत्थु मा मुसलकिणंकिउ होउ हत्थु । अणुवसहुँ एहि महुं पंजलीइ मा सलिलु बहहि फणिनुंभलीइ। महु खग्गवायलंछणहरेण
खंडें रहुबइसिरखप्परेण । मा बहउ विणेउरु चरणजुयलु करमरि कालायसलोहणियलु । 10 थिय सइ णियपिययमलीणचित्त उत्तरु ण देति पहुणा पउत्त। घत्ता-पई सोइ अज्जु तिलु तिलु करमि भूयहं देमि दिसाबलि ॥
पर पच्छइ दूसह होइ महुं विरहजलणजालावलि ॥21॥
22.
दुवई--ता मंदोयरीइ दिण्णुतरु जंपसि सुयणगरहियं ।।
किं तियसिंदवंदकंदावण रावण जुत्तिविरहियं ॥छ।। हा पुरिस हुँति सयल वि णिहीण घरघरिणि जेइ वि उव्वसिसमाण । कामेण तइ वि ते खयह जंति परधरदासिहि लग्गिवि मरंति। कहिं काइहि रत्तउ रायहंसु कहिं खरि कहिं सुरकरिहत्थफंसु। 5 कहिं भूगोयरि कहि खेयरिंदु
हा मयणजोगपरिणाणि मंदु । पादुकाओं के मणि विभूषणों से क्या ? मेरी दासी होते हुए भी तु मेरी महादेवी बन । आती हई लक्ष्मी को हाथ मत दे। तुम विश्वस्त हो मेरे उर का लालन करो। तुम्हारा हाथ मूसलों के चिह्नों से अंकित न हो, तुम मेरी अंजलि में आकर निवास करो, नाग के शिरोभूषण पर पानी मत डालो । मेरी तलवार के आघात के चिह्न को धारण करने वाले खंडित राम के सिररूपी खप्पर के साथ, नपुर से रहित हे दासी, अपने पैरों को कालायस लौह श्रृखला से युक्त मत कर । अपने प्रियतम में लीन चिह्न वह सती चुपचाप रह गई । उत्तर न देने पर राजा (रावण) ने कहा
धत्ता--हे सीता, आज मैं तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा और भूतों को दिशाबलि छिटकवा दूंगा । फिर बाद में मेरी विरहाग्नि-ज्वाला असह्य हो उठेगी।
(22) तब मन्दोदरी ने उत्तर दिया, हे इन्द्र को कंपानेवाले रावण, तुम सज्जनों के द्वारा निंदनीय और युक्ति से विरहित यह क्या कहते हो
हत, सभी पुरुष नीच होते हैं । यद्यपि उनकी घरवाली उर्वशी के समान भी हो, फिर भी वे काम के द्वारा क्षय को प्राप्त होते हैं, और दूसरे के घर की दासी के लिए मरते हैं । क्या हंस कभी कौए की स्त्री में अनुरक्त होता है ? क्या कहीं ऐरावत की संड गधी का स्पर्श करती है ? कहाँ मनुष्यनी, और कहाँ विद्याधर राजा? तुम कामशास्त्र के परिज्ञान में मंद हो। जिसने अन्धकार समूह को ध्वस्त कर दिया है, ऐसा चन्द्रमा जैसे गंगा में दिखाई देता है, वैसा ही नगर की जलवाहिनी में भी । कामुक लोग जो भी दुश्चरित्र करते हैं, वे महिलाओं में कुछ भी अन्तर 2. P मुसलु किणकिउ ।
(22) 1. A परियाणि; P परिमाणि।