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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण पत्ता-रिजजरकुरंगु महु आवड हउँ हरि उद्ध यकेसरु ॥
___ जइ दुडु दिविगोयरि पडइ तो मारमि लंकेसरु ॥6॥
दुवई–सीयागुणविसेससंभरणचुयंसुयसित्तवसुमई ।।
उम्मोहिउ विओयविसधारित कह व णिवेहि महिवई छ।। पियविपओयकरमणिमण जांवच्छइ सेज्जायलि णिसपणु । तावाय बेणि खग विमलदेह णं रामसासथिरकरणमेह। गं सीयामग्गपयासदीव बेणि वि पणवेप्पिणु थिय समीव। 5 संमाणिय हरिणा संणिसण्ण सुहिसणरुहरोमंचभिषण । बोल्लाविय बेण्णि वि दिव्वकाय कहुं तुम्हइ कि किर एत्थु आय। तं णिमुणिवि भासइ जेठ्ठ खयरु खगदाहिणसे दिहि अस्थि णयरु । णामें किलिकिल कलहंससहिय जहि विविवास चोरारिरहिय। तहि महु' बलिदु माणियपियंगु तहु धण पियंगसुंदरि पियंगु । 10 सामल सलोण उडुणिणहालि तहि पढममुत्त णामेण वालि । हउं लहुयारउ सुग्गीउदेव अणवरउ करमि णियपियरसेव । धत्ता-ता तेत्थु मरतें पुरि पिउणा वालि रज्जि वइसारिउ ।
हउं जुवराणउ कउ मइ जणणि" दाइएण णीसारित ।। 7॥ घत्ता–श मुझे बूढ़े हरिण की तरह प्रतीत होता है। मैं, जिसकी अयाल ऊपर उठी हुई है, ऐसा सिंह हूँ। यदि वह लंकेश्वर मेरी निगाह में पड़ता है, तो मैं उसे मार डालूंगा।
सीता के गुण विशेष के स्मरण से गिरे हुए आंसुओं से जिन्होंने धरती को सिंचित कर दिया है, ऐसे वियोग के विष से व्याकुल महीपति राम को राजाओं ने किसी प्रकार समझाया ।
प्रिया के वियोग के कीचड़ में निमग्न राम जब अपनी सेज पर बैठे हुए थे, तब पवित्र शरीर विद्याधर ऐसे आए मानो राम रूपी धान्य को स्थिर करने के लिए मेघ हों, मानो सीता के मार्ग को प्रकाशित करने वाले दीप हों। दोनों प्रणाम करके वहाँ पास में बैठ गए । बठे हुए उनका लक्ष्मण ने सम्मान किया । सुधि और दर्शन से उत्पन्न रोमांचित दिव्य शरीर वाले उन दोनों से लक्ष्मण ने पूछा--कहाँ से किसलिए आए? यह सुनकर बड़ा विद्याधर कहता है-विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणो में एक नगर है, जो नाम से किल-किल कलहंसों से सहित है। जहां चारों ओर शत्रुओं से रहित विविध आवास घर हैं, वहाँ जिसने प्रियंगु को माना है, ऐसा मेरा राजा बलि है। उसकी पत्नी प्रियंगु सुंदरी प्रियंगु के समान सुन्दर श्यामल और नक्षत्र पंक्ति के समान नखों वाली है। उसका पहला पुत्र बालि नाम का है, और मैं छोटा सुग्रीव देव हूँ। मैंने अनवरत रूप से पिता की सेवा की है।
पत्ता-पिता ने मरते समय बालि को राजगद्दी पर बैठा दिया, और मैं युवराज बना दिया गया । मुझे भाई ने निकाल दिया ।
पई। 2 P has ता before पिय13. P°णिसण | 4. A पहुँ। 5. AP पियंगुसुंदरि। 6. A जणेण ।