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73.2.9]
महाकइ- पुष्कर्यत विरइयउ महापुराणु
गच्छंतु अहोमुहु तिमिरमंथु राम कत्तु इह हित्तु जेण गज अत्यवहु कंदो जुरु
णं दाव णरयहु तणउ पंथु । जाएसइ सो सम्मेण एण । करसहस्रेण वि णउ धरिउ सूरु ।
चत्ता - विडंतु जंतु हेट्ठामुहउ रवि किं एक्कु भणिज्जइ ॥ जगलच्छी मंदिरणिग्गयहिं मंददि को रक्खिज्जइ || 1 ||
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दुवई - माणवभवणभरहखे त्तोवरि वियरणगमियवासरो ॥ सीयारामलक्खणाणंदु व जामत्थमिओ' दिणेसरो । छ || झारायको भचीरु' । farasबिओज' अइअसहमाण । मलिय कमलु णं ताहि तुंडु | तारयिण णाव तुट्ट हारु । तरिरि समरि भिडिउ । परिपालियखतु व रायउतु । सोहर णावर दहवयणु बीउ ।
पच्छाइयलयलायासतीरु
सिरि परिहइ रंडिज्जमाण सिसुससि भग्गज णं वलयखंड विक्कि पत्तु दियतपारु गय णिसि उययाकरिहि चडिउ उग्गंउ उष्णई पहरेण पत्तु fares restar उमसीड
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पश्चिम दिशा) के संग पड़ जाते हैं, मानो पक्षिकुल यह कह कर चिल्ला रहा है, अंधकार का नाश करने वाला (सूर्य) अधोमुख जाता हुआ नरक के पक्ष को दिखा रहा है। यहाँ जिसने राम की पत्नी का अपहरण किया है, वह भी इसी मार्ग से जाएगा । कमलों को खिलाने वाला सूर्य अस्त को प्राप्त हो गया, हजार किरणों के द्वारा भी वह नहीं पकड़ा जा सका ।
घता पतित होता हुआ और अधोमुख जाता हुआ क्या अकेला सूर्य ही है ? विश्व में लक्ष्मी के घर से निकले हुए मंद व्यक्तियों से किसकी रक्षा की जा सकती है ?
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मानव जाति के घर भग्तक्षेत्र के ऊपर, जो विचरण कर अपना दिन बिताता है, ऐसा सूर्य सीता, राम और लक्ष्मण के आनन्द के समान जब अस्त को प्राप्त होता है, तो आकाश की लक्ष्मी विधवा होती हुई, समस्त आकाश रूपी तीर को आच्छादित करने वाली वह संध्या मानो राग रूपी वस्त्रको पहिन लेती है । दिनपति के वियोग को नहीं सहन करती हुई, उसने बाल चन्द्र को इस प्रकार खंडित कर दिया मानो अपना बलयखंड ही खंडित कर दिया हो । कमल मुकुलित हो गया, भानो उसका मुख ही मुरझा गया हो। जो इधर-उधर विकीर्ण होकर दिगंत पर्वत पहुँच चुका है, ऐसा तारागण मानो उसका टूटा हुआ हार है। रात्रि व्यतीत हो गई । उदयाचलरूपी महागज पर चढ़ा हुआ वह (सूर्य) अंधकार रूपी शत्रु राजा से युद्ध में भिड़ गया। जिसने क्षात्र धर्म का परिपालन किया है, ऐसे राजपुत्र के समान जो एक प्रहर ( प्रहार )
(2) 1. AP आमत्थमिउ फेसरों । 2. A संसाराएं । 3 A विओ। 4. AP णं भग्गर । 5. APT विविण्ण उ पत्तदियंतरालु ।