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तिसत्तरिमो - संधि
मायारच किं माणिक्कमउ जो रहु सीहहु णंदुउ ॥ महं णाar' भावइ सो हरिणु चंदहु सरणु पट्ठउ ॥ वकं ।
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दुबई- एहि रामसामि भृगपच्छइ' गउ दूरंतरं वणे ॥ एतहि णीय सीय दहचयणें एतहि सोउ परियणे ॥ छ ॥ एतहि दिति' अत्यइरिसाणु संपत्तउ लहु अत्यमि भाणु । णरतिरियणयणपसरण हरंतु चकलहं ततवणु करंतु । णं दिसइ लड्उ रइरसणिहाउ णं णिउ रावणपया' । णं रद्द समुद्धे रयणसंगु णं महिइ गिलिउ रइरहर हंगु# । देउ वि वारुणिसंगेण पडद इय भणंतु पक्खिउलु रडइ ।
तिहत्तरवीं संधि
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वह माणिक्यमय हरिण क्या मायावी था कि जो राम रूपी सिंह से नष्ट हो गया ? वह हरिण मुझे चन्द्रमा की शरण में गया हुआ अच्छा लगता है।
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दुवई - यहाँ स्वामी राम मृग के पीछे वन में दूर तक चले गये। यहाँ सीता दशमुख के द्वारा ले जाई गई और यहाँ स्वजनों में शोक बढ़ गया ।
यहाँ दिन का अन्त होने पर अस्तंगत सूर्य शीघ्र ही मनुष्यों और तिर्यंचों के नेत्र- प्रसार का हरण करता हुआ, चक्रवाल कुल के लिए शरीर संताप करता हुआ, अस्तगिरि के शिखर पर इस प्रकार पहुँच गया मानो दिशा ने (पश्चिम दिशा ने) रति-रस के निधान को ले लिया हो, मानो रावण का प्रताप नष्ट हो गया हो, मानो समुद्र ने रत्न का ( सूर्य का ) साथ कर लिया हो, मानो धरती ने रति के रथ चक्र को निगल लिया हो । देव (सूर्य) भी वारुणी (सुरा,
(1) 1. AP भाव णावह 2. AP मिंग। 3 A दियंति; K दिणंति, corrects it to दियंति but has a gloss दिनस्यान्ते । 4. AP पिट्टिउ । 5. AP रामणभूय । 6. A रवि रहौं ।