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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
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कि किज्जइ वाइसु जइ गरुलु" किं किज्जइ खरु जइ दुद्धरह किं किज्जइपिप्पलु सन्नसलिउ कि किज्जइ राह मुद्धि तइ ता सीयइ उत्तर मणि थविउ जहि कंकु राय व गणि जहि गुणवंतु वि दोसिल्ल समु
उस पसिय विउसजणि धत्ता - पेय तण मुहं विसाव इस चितिवि हियइ मोणव्बउ
सुपसण्णु होइ बहुबाहुबलु । पाविज्जर कंधरु सिंधुरहु । जइ दोसइ सुरतरुवरु' फलिउ । रावण महिलत्तणु होइ जइ । yas अण्णाणिइ कि लविउ । एरंडु कप्परुक्खु व भणिउ । तहि जे विरयति वयणविरमु । fotoes बुद्धि को मुखयणिः । को जगि चुंविवि ॥ थिय अवलंबिवि ॥ 11 ॥
[72, 11.3
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जयजसरामहु रामहु तणिय जहुँ- पेसियले सहुं
तो पुणु जिणवरिदु सरण एतहि जक्खाहिवरक्खियउं पहरणपरिपाल रखियॐ
उहालहि खयरविसरिसु^
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सुविदत्त सुहावणिय 1 तहुँ' आहारपविति महुं । संत्रज्ज सल्लेगम पहवंतु रंतु णिरिक्खियजं । पण दहगी अक्खिय उप्पण्णड चक्कु जणियहरिसु ।
जहाँ बहुत बाहुबल वाला गरुड़ प्रसन्न होता है? उस गधे से क्या यदि दुर्धर महागज का कंधा प्राप्त होता है ( बैठने के लिए ) ? काँपते हुए पीपल के पत्ते से क्या जहाँ कल्पवृक्ष फला हुआ दिखाई देता हो ? हे मुग्धे, राम से क्या यदि रावण का पतीत्व प्राप्त होता है ? (यह सुनकर ) सीता ने उत्तर अपने मन में रख लिया। ( उसने सोचा ) इस अज्ञानी ने क्या कहें ? जहाँ बगले को राज हंस समझा जाता है, एरंड को कल्पवृक्ष कहा जाता है, जहाँ दोषी व्यक्ति ही गुणवान है, ऐसे स्थान पर जो लोग अपने शब्दों के विराम की रचना करते हैं, उन पंडितों की विद्वत्सभा में प्रशंसा की जाती है । मूर्खजनों में अपनी बुद्धि कौन बर्बाद करता हैं ?
धत्ता- कौन व्यक्ति विश्व में प्रेत के मुख को चूम कर उसे विकसित कर सकता है, अपने मन में यह विचार कर वह मौन का सहारा लेकर स्थित हो गई ।
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जय और यश से सुन्दर राम की सुहावनी वार्ता, जब में प्रेषित लेखपत्र द्वारा सुनूंगीतभी मैं आहार ग्रहण करूंगी (अर्थात् भोजन ग्रहण करूंगी) नहीं तो मेरे लिए जिनवर की शरण है, मैं संलेखना मरण को प्राप्त होऊँगी । यहाँ पर आयुधों की रक्षा करने वाले ने कुबेर के द्वारा रक्षित चमकता हुआ चक्ररत्न देखा। उसने प्रणाम कर रावण से कहा - आयुधशाला
प्रलयकाल के सूर्य के समान तथा हर्ष उत्पन्न करने वाला वक उत्पन्न हुआ है । इससे राजा 2. AP वायसु । 3. P गर। 4. AP सुरखरतरु। 5. AP रामें । 6. AP विजयणि । 7. A मुखमणि । 8 A थिउ ।
(12) 1 AP जय लक्ष्खणराम तणिय 2. AP जइहूं। 3. AP तइयहुं । 4. K records a आरकिय इति पाठे आरैः क्षितं प्राप्तं अराणां वा निवास: S, AP खररवि° ।