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महाक - पुष्कवंत - विरद्रयउ महापुराण
उपासिहि थियउ नियच्छिउ संदेहु उ पुरि एह कवण किं जमणयरि जसु तलबरु जमु किर भणइ जणु जसु इंदु विसंगरि थरह इ जम वाराई तराणरु सुवद जसु अग्गइ ण्डइ सरासइ वि जसु पंगणि मेहहि दिष्णु छडु सो एहि कहि एडु पई भत्ता समिच्छहि माइ तुहुं
घत्ता -
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- सामिणि राणियहं णीसेसहं होइवि अच्छहि ॥ महए वित्तणयहु परमेसरि पट्ट परिच्छहि ॥ 10 ॥
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कि किज्जद हरिणु अधीरमइ, किं किज्जइ दीवर तुच्छछवि
पुणु खयरपुरंधिः पुच्छियउ । णिवु कालउ जमु किंवा मणुउ । तावेक्क पंप तहि खयरि । जसु देइ णिच्च वइसवणु धणु । जसु मारुड घरकयारु हरइ । दिनकरिउ णामें मउ मुयइ । कुसुमंजलि घिवइ वणासइ वि । 'जसु को वि णत्थि पडिमल्लु भड्डु । रावणामें तिहुवणजिइ । अणुर्भुजहि इच्छिकामसुतुं ।
जइ लग्भइ सीह किसोरु' पइ । जर अंधारु figas रवि ।
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उसने चारों ओर स्त्रियों को बैठे हुए देखा, फिर विद्याधरियों से पूछा- बताओ - बताओ मुझे संदेह उत्पन्न हो गया है कि यह राजा काल है या यम या कि मनुष्य ? यह कोई नगरी है .या यमनगरी ? तब एक विद्याधरी उससे कहती है— लोग यम को जिसका तलवर (कोतवाल) बताते हैं, कुबेर जिसे नित्य प्रति धन देता है, युद्ध में इन्द्र भी जिससे थर-थर काँपता है, पवन जिसके घर का कचरा निकालता है. अग्नि जिसके कपड़े धोती है, जिसके नाम से दिग्गज समूह मद छोड़ता है, सरस्वती जिसके आगे नाचती है और वनस्पतियाँ कुसुमांजलियाँ बरसाती हैं, मेघ जिसके आंगन में छिड़काव करता है, विश्व में जिसका प्रति योद्धा दूसरा कोई नहीं है, यह इस लंका का स्वामी है । त्रिभुवन के विजेता उसका नाम रावण है। हे आदरणीया, तुम उसे अपना पति मान लो और अभिलषित काम सुखों का भोग करो ।
धत्ता — निःशेष रानियों की स्वामिनी होकर रहो। हे परमेश्वरी, तुम महादेवी के पद को स्वीकार करो ।
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अधीरमति उस हरिण से क्या करना यदि किशोर सिंह के रूप में पति मिलता है ? तुच्छ प्रकाशवाले दीपक से क्या यदि सूर्य अन्धकार को नष्ट कर देता है ? बहाँ कौए से क्या,
( 10 ) 1. AP जयरि° । 2. A घर कथारु 1 3. AP बत्थई । 4. A omite this foot 5. A इछ काम । 6. A महविहि तण; P महएबीए पत्तणहु । 7. A पड़
( 11 ) 1. A सी किसोर ।