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69. 18.12]
महाका-पुफ्फर्यत-निरपयउ महापुराणु घत्ता-कपणइ गुणसंदोहे हियवउं सयरि णिहित्तउं" ॥ __ मायइ विहसिवि ताम अवरु पडुत्तरु बुत्तउं 117।।
18 सुणि देसि सुरम्मइ सहलवणि पोयणपुरि धणपरिपुण्णजणि । बाहुबलिणराहिवसंतइहि जायउ महु बंधु कुलुण्णइहि । तिपिंगु तासु पिय सुजसमद वीणारव णं मणसियह रइ। तहि तणउ तणउ णं कुसुमसरु तरुणीयणलाइयविरहजरु । महुपिंगु णामु तुह मेहुणउ सुइ अच्छइ आयउ पाहुणउ । अण्णेत्तहिं म करहि रमणमइ' तुह जोग्गु जुवाणउ सो ज्जि लइ । णियभाइणेज्जु बरु इच्छियज अण्णेक्कु असेसु दुगुंछियउ । सासुयइ पइत्त समारियां पडिवक्खागमणु णिवारियां । अण्णेक्क सयरहु साहिब आहरणहि पसाहियां । जंकण्णारयणु समहिलसिउं तं दुल्लहु वट्टइ विहिवसिउ । पत्ता-अतिहीदेविहि बंधु जो तिणपिंगलु राणउ ॥
महुपिंगलु तहु पुत्त आयउ मयणसमाणउ ।।18।।
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पत्ता-कन्या ने गुणों के समूह राजा सगर में अपना हृदय स्थापित कर दिया। परन्तु उसकी माता ने हंसते हुए उसे (कन्या को) दूसरा ही उत्तर दिया।
(18) सुफल बन वाले सुरम्य देश में वन से परिपूर्ण लोगों वाला पोदनपुर नगर है, उसमें बाहुबलि राजा की वंश परम्परा में कुल की उन्नति करने वाला मेरा भाई तृणपिंग है। उसकी यशोधरी नाम की पत्नी है। वीणा के समान शब्द वाली जो मानो कामदेव की रति है, युवतीजनों को विरहज्वर उत्पन्न करने वाला मधुपिंगल नाम का उसका कामदेव के समान पुत्र है । वह तुम्हारे मामा का बेटा पाहुना बनकर आया है, और यहाँ अच्छी तरह है। इसलिए तुम किसी दूसरे में रमण की बुद्धि न करो। वह तुम्हारे योग्य युवक है, उसी को तुम ग्रहण करो। अपने भाई के पुत्र को वर के रूप में पसन्द करो और बाकी सबकी उपेक्षा कर दो। इस प्रकार सास ने अपना प्रयत्न शुरू कर दिया और प्रतिपक्ष (सगर) का बहाँ आना मना कर दिया। किसी दूसरे ने जाकर राजा सगर से कहा-जो तुमने अलंकारों से प्रसाधन किया है, और जो कन्या की इच्छा की है, वह भाग्य के बल से असंभव दिखाई देती है।
घत्ता-अतिथि देवी का भाई जो तृणपिंगल नाम का राजा है, उसका कामदेव के समान मधुपिंगल नाम का पुत्र आया हुआ है।
6.AP णिहत्त। (18) 1. Aणा लसु पेहण उ । 2. A अण्णहे तहे । 3.A रमणरइ । 4. A सवारियज; P संवारियउ।