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महाका-पुप्फयंत-विरहयज महापुरश्णु धत्ता-हुणिवि" तुरंग मयंग दणुएं दाविय मायइ ॥
कुंडलमउडफुरंत दिटु देव णहभायइ ॥29॥
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अप्पाणउ तहिं जि' हुणावियउं देवत्त णहंगणि दावियउं । सत्तच्चिणिहित्तई चउपयह णिट्टियई सट्ठिसहसई मयहं । मायारएण जणु मोहियउ संतीइ सुहेण पयासियउं। हारावलिरुइरंजियथणिय सुलसा वि तेण हुयवहि हुणिय । गोसवि णियजणणि वि अहिलसिय सयामणिमहि' मइर वि रसिय । विप्पहं बंभणिवरंगु विहि महुणा लित्त जोहइ लिहिउँ । मह मंत्रिय हो त्र जड अवलोयवि होमिज्जंत भड । घरु जाइवि तणु घल्लिवि सयणि पहु सोयह हा हा मिगणयणि । हा सुलसि काई मई तुज्झु किंउ किह जोवियम्बु' गिड्डहिवि गिउ। ता' तहिं जि पराइउ पवरजइ पुच्छइ पणामु विरइयि णिवइ।
10 किं धम्मु भडारा पसुवहणु किं सध्यजीवदयसंगहणु ।
पत्ता-राक्षस ने (महाकाल ने) यज्ञ में हाथी-घोड़ों को होमकर उन्हें मायाबल से आकाश में दिखा दिया । आकाश में कुंडलों और मुकुटों से स्फुरित होते हुए देव दिखाई दिये।
(30) उसने अपने को भी यज्ञ में होम कर दिया और आकाश के प्रांगण में देवत्व के रूप में प्रदर्शन किया। आग में डाले गये साठ हजार पशु नष्ट हो गये। उस मायावी के द्वारा लोग ठगे गये। उसने शांति और शुभ के लिए उन्हें प्रकाशित किया। हारावलि को कांति से जिसके स्तन शोभित हैं, ऐसी सुलसा को भी उसने आग में होम दिया। गो यज्ञ में उसने अपनी माता की भी इच्छा की और सौत्रापिणी यज्ञ में मदिरा का पान भी किया। ब्राह्मणों के लिए ब्राह्मणियों के उसमांग की रचना की गई मधु से. लिप्त जो जीभ के द्वारा चाटी गई। इस प्रकार उस धूर्त के द्वारा बहुत-से लोग ठगे गये। होमे जाते हुए योद्धाओं को देखकर घर जाकर अपने शरीर को बिस्तर पर डालकर राजा सगर शोक करने लगा-हे मगनयनी, हे सरसे, मैंने तम्हारे लिए यह क्या किया ! मैंने तुम्हारे जीवन को क्यों जला डाला ! इसी बीच एक महामुनि वहाँ पहुँचे। राजा उन्हें प्रणाम कर पूछता है : हे आदरणीय, पशुओं का वध करना धर्म है ? या सब जीवों के प्रति दया करना धर्म है ?
11. A हणवि। 12. A "मउल। (30) 1. Paहिं तो। 2.P णिहित्तहं । 3.P सोपामणि। 4. A होमिज्जति। 5. A जीवियत्यु ।
6. P तो।