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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
ललिय महाकपयपउत्ति णं गुणसमग्ग सोहग्गथत्ति लायणवत्त' णं जलहिवेल रिग्रहणं समुति धत्ता - जसवेल्लि व अट्ठमराहवहु अमरदिण्णकुसुमंजलि ॥ पुरि वडिय जणयणरिदस्य रामण रामहं णाई कलि ||9||
पयकमलहं रत्तत्तणु जि होइ गुंफलं पुणु' गूढत्तणु जि चारु जंघाबलेण जायउ अजेउ णालोइउ जाणु संधिठाणु ऊरूयलचितइ हयसरीर कडियलु गरुत्तणगुणणिहाणु गंभीरम णाहिहि णवर होउ पत्तलउं उपरु सिंगारु करइ
णं मयणभावविरणाणजुत्ति । गं णारिरूवविरयणसमति' । सुरहिय णं चंपय कुसुममाल । क्खणणं वायरणबित्ति ।
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(70.9.6
इयरह कह रंगु वहति जोइ । इयरह कह मारइतिजगु माह । इयरह कह वग्गइ कामएउ | इयरह कह संधइ कुसुमबाणु । इयरह कह जालंधरियसार । इयरह कह गरुयहं महइ माणु । इयरह कह णिवडिउ तहि जि लोउ । इयर कह मुणिपतत्तु हरइ ।
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चन्द्रमा की देह हो । मानो महाकवि के पद की सुन्दर युक्ति हो । मानो गुण की समग्रता हो । सौभाग्य की सीमा हो । मानो नारी रूप के रचने की समाप्ति हो । मानो सौन्दर्य की पिटारी हो । मानो सुगंधित चम्पक कुसुमों की माला हो । मानो स्थिर हुई सत्पुरुष की कीर्ति हो । मानो अनेक लक्षणों वाली व्याकरण की वृत्ति हो ।
घत्ता -- मानो आठवें बलभद्र के यश की बेल हो । मानो देवताओं द्वारा दी गई कुसुमाञ्जलि हो । इस प्रकार जनक राजा की वह कन्या नगर में बड़ी हो गई, राम और रावण की कलह
समान ।
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उसके चरण कमलों में रक्तता है, नहीं तो मुनि उसे देखने में राग धारण क्यों करते हैं ? उसकी एड़ियों में अत्यन्त सुन्दर गूढ़ता है, नहीं तो कामदेव तीनों लोकों को कैसे मारता है ? वह जंघाबल से अजेय है, नहीं तो कामदेव इतना इतराता क्यों है ? उस्तल की चिन्ता से वह क्षीण शरीर हो गई अन्यथा वह कदली की तरह (तुच्छ ) क्यों है ?
उसकी कमर गुरुता के गुण का खजाना है। नहीं तो बड़े लोगों का मान क्यों धारण करती है ? उसकी नाभि में केवल गंभीरता है, नहीं तो उसमें लोक क्यों गिरता है ? उसका पतला उदर उसकी शोभा को बढ़ाता है, नहीं तो वह मुनियों की पात्रता का हरण क्यों करती है ? उस मुग्धा
4 A समयि । 5. A लायण्णवण्ण । 6. P सुरहिय णवचंपय । 7. P सुप्युरिस | 8 A णं रामहं रावण कलि P रावणरामहं णाई कलि ।
( 10 ) 1. A गुप्फहूं; P गुप्पहं । 2. A omits पुणु । 3. A अण्णुद्दि P जं तुहुं । 4 AP गरुयत ।