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महाका-पुष्फपंत-धिरइयज महापुराण
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अह एयइ काई जियंतियाइ कुरइ णियतायकयंतियाइ। गिरिदारणीइ कि गिरिणईइ हो हो कि एयइ दुम्मईई। आलिहिउंपत्त मच्छरकराल' रावणदेहुब्भव' एह बाल । बहुदुक्खजोणि बंधुहं असीय सुविसुद्धवस णामेण सीय। इय भासिवि मंजूसहि णिहित्त सहुँ रयणहिं वरराईवणेत्त। दहगीवजीवरक्षणकएणणिय णिविस" णहि मारीयएण। चंपय चवचंदणच्यज्झिा बहि मिहिलाणयरुज्जाणज्झि। धत्ता-मंजूसई सहुं छणयंदमुहि सरिसरणिज्झरसीयलि॥ ण रहुवइसिरिलयकंदसिरि णिक्खय सुय धरणीयलि ॥8॥
9 गउ विज्जापुरिसुणहतरेण तिखें महि दारिय लंगलेण । आरामुछित्तधुरंधरेण मंजूस दिट्ठ पामरणरेण । वणवालहु अप्पिय तेण णीय' रायालउ राएं विट्ठ सीय । वाइवि व इयरु बुज्झिय विणीय णियपियहि दिण्ण पडिवण्ण धीय ।
वनइ परमेसरि दिव्वदेह णं बीयायंदहु तणिय रेह । को छोड़ना । अथवा अपने पिता का अन्त करने वाली या अपने पिता के लिए यम के समान इस कन्या के जीने से क्या ? पहाड़ को ही चीरने वाली पहाड़ी नदी से क्या? हो-हो, इस दुर्मति कन्या से क्या? पत्र लिखा गया कि ईर्ष्या से भयंकर यह बाला रावण की देह से उत्पन्न हुई है । बन्धुजनों के लिए दुःख की कारण, संताप देने वाली, अच्छे वंश वाली इसका नाम सीता है। ऐसा कह कर उत्तम कमलों के नेत्रों वाली उसे रत्तों के साथ मंजूषा में रख दिया गया। और रावण के जीव की रक्षा करने वाला मारीन पल भर में उसे आकाश में ले गया। मिथिला नगरी के बाहर चंपक, धवल, चंदन, आम्र वृक्षों से गहन उद्यान के मध्य में ।
घत्ता-उसने नदी, तालाब, निर्झर से ठण्डे धरती तल पर पूर्ण चन्द्रमा के समान मुख वाली उस कन्या को मंजूषा के साथ इस प्रकार रख दिया मानो राम की लक्ष्मी रूपी लता के अंकुर की शोभा हो।
(9) विद्यापुरुष (मारीच ) आकाश मार्ग से चला गया। एक किसान ने अपने तीखे हल से धरती को फाड़ा। और हल के आरा के मुख से धरती को फाड़ने में निपुण किसान ने उस मंजूषा को देखा। उसने वह मंजूषा वनपाल को दी, वह उसे राज्यालय ले गया। राजा ने उसे देखा, वृत्तान्त को पढ़कर उसने अपनी पत्नी को वह विनीत कन्या दी और उसने भी उसे स्वीकार कर लिया। वह दिव्य देह वाली परमेश्वरी दिन-दूनी रात चौगुनी इस प्रकार बढ़ने लगी मानो द्वितीया के 4. P अच्छर। 5. P रावण° 6.A णिवसे । 7. AP धयचंदण।
(9) 1. A सीय । 2. AP रायालइ । 3. AP बीयाईदह ।