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71.5.2]
महाकइ-पुरफयंत-विरइयउ महापुराण
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ता परियाणवि कलहळु कारण अबसें होसइ एत्थु महारण । गउ णारउ णियमणि संतुटुउ वीसपाणि मंतणइ पइट्ठउ । दुट्ठ अणि? विसिठ्ठ ण सिट्ठउ मंतिउ' मंतु सबुद्धिइ दिट्ठउ । तणुलायण्णवण्णजलवाहिणि हिप्पइ रहुकुलणाहु गेहिणि । मारिज्जति भाइ ते भीसण भणु मारीयय भणइ बिहीसण । तं णिसुणिवि मारीए वुत्त परवहुरमणु णरिंद अजुत्तउं। परवहुरमणु धम्मणिल्लूरणु परवहुरमणु सयणसयजूरणु । परवहुरमणु कित्तिविद्ध सणु परवहुरमणु विमलकुलदूसणु । परवहुरमणु पराहबमारउं परवहुरमणु णरयपइसारउं। पत्ता-परयारु सुविट्टलु दुक्खहं पोट्टलु दुग्गमु दुज्जसपरिया॥ बहुभवसंसारणु सिवगइवारणु पावासवविहिवासघर ।।4।।
5 दुत्तरमोहमहणवि
धू परवर मणु करइ जो मूढउ । तुहुं धई बहुसत्थत्यवियाणउ अण्णु वि सयलहि पुहइहि राणउ ।
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तब इस कलह के कारण को जानकर कि अब अवश्य ही महायुद्ध होगा, नारद अपने मन में संतुष्ट होकर चला गया और रावण भी परामर्श के लिए महल में प्रविष्ट हुआ। उसने यह दुष्ट अनिष्ट बात विद्वान् मंत्री से नहीं कही, अपनी बुद्धि से ही इस बात का विचार किया कि शरीर के सौन्दर्य और वर्ण की नदी रघुकुलनाथ की गृहणी का हरण किया जाए, उन भयंकर भाइयों को मार दिया जाए । यह मारीच से कहो । तब विभीषण कहता है । यह सुनकर मारीच बोला, हे राजन्, परवधू से रमण करना अनुचित है, परवधू का रमण धर्म का नाश करने वाला होता है, परवधू का रमण आत्मीय जनों को संताप पहुंचाने वाला होता है। परवधू का रमण कीर्ति का नाश करने वाला होता है। परवधू का रमण पवित्र कुल को दोष लगाने वाला है। परवधू का रमण दूसरों का अपकार करने वाला है, परवधू का रमण नरक में प्रवेश कराने वाला है।
धत्ता-परस्त्री अत्यन्त नीच दुःख की पोटली होती है। दुर्गम और खोटे यश की समूह है, अनेक लोकों में घुमानेवाली एवं मोक्षगति का निवारण करनेवाली और पापाश्रय विधि का वासघर होती है।
जो मूर्ख व्यक्ति परवधू से रमण करता है, वह नहीं तरने योग्य मोह रूपी महासमुद्र में जा गिरता है। तुम अनेक शास्त्रार्थों को जानने वाले हो, और फिर सकल धरती के राजा हो। जो
(4) 1. A परितच 1 2. AP वइट्ठउ । 3. AP वसिद्धउ । 4. AP मंतिए। (5) I.AP सई।