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71.9.6]
महाकइ-मुष्यंत विरइयउ महापुराण
कोकणयहि इकाई त्रि दिज्ज दरिसियहरिसियत्रम् महलीलउ करइ किपि चंगउं ववसायउं हिमवंती विमंतबीक्खरु मज्जएसणारीड कलालउ
धत्ता - संसयजुत्तहं जाइहि सत्तहं सयलहं पयइणिवासु हि ।। गिरिसरिहरठाणं अमरविमाण
सावितिविह णरजम्मि विज्झइ पित्तपrs रूसइ खणि खणि गोरी बुद्धिवंत पिंगल उष्णय सिहिणवरंग' मुणेज्जसु सीयलु गंधु सेज' पंगुरणउं सिभपयइ सामल वण्णुज्जल
तोतिं पाडलिउत्तियाउ करणालउ । पारियत पुरिसाइड |
जाणइ जेण" पड गायहि वरु । होति राय सयदल सोमालउ ।
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मय रहरहं तेलोक्कु जिह् ॥8॥
पित्तभिमारुयहिं णिरुज्जइ । संतोसेवी धुत्त दिणिदिनि । भउएं किज्जइ सारइनिभल" | सीलु तहि आलिंग देज्जसु । सीयलु" ताहि जि सुरयारुणचं | अहिणव वायलीकंदल कोमल ।
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होती है। और यदि मराठी स्त्री के बारे में कहा जाये तो उसमें केवल धूर्तता ही दिखाई देती है । कोंकण देश की स्त्री को यदि कुछ दिया जाये तो वह उसका विचार करती हुई दुबली होती जाती है। जो हर्षित होकर कामदेव की कीड़ा का प्रदर्शन करती है, ऐसी पाटलीपुत्र की स्त्री अपने स्तन के ऊपर स्तन रखने वाली होती है। पारियात्र देश को स्त्री पुरुष के प्रतिकूल कुछ भी अच्छा या बुरा व्यवसाय करती है । हिमवंत देश की स्त्री मंत्र के बीजाक्षरों को जानती है। इससे पति उसके पैरों पर गिरता है । हे राजन्, मध्यदेश की स्त्रियाँ कलायुक्त होती हैं, और कमल के समान कोमल होती है।
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पता- सैकड़ों देशों से युक्त सभी सातों जातियों की प्रकृति का निवास इनमें उसी प्रकार होता है, जिस प्रकार पहाड़, नदी, धरती के स्थान, अमर विमानों और समुद्रों का त्रिलोक में होता है।
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उस स्त्री को भी मनुष्य जन्म में तीन प्रकार से रचा गया है, कफ और बात के द्वारा उसे अवरुद्ध किया गया है। पित्त प्रकृति वाली स्त्री क्षण-क्षण में क्रुद्ध होती है। उसे प्रतिदिन धूर्तता से संतुष्ट करना चाहिए। गौरी, बुद्धिमती, पीले नख वालो को कोमलता के साथ रति से विह्वल बनाना चाहिए। उन्नत स्तनों और श्रेष्ठ अंग वाली को समझना चाहिए और उसे धीरे-धीरे आलिंगन देना चाहिए। जो शीतलगंध, स्वेतपट और शीतल हो उसे सुरति का आरोहण देना चाहिए। कफ प्रकृतिवाली श्यामल और उजले रंग को होती है, तथा नये केले के पत्ते के
10. A भिज्ञ
11 AP जेहि । 12. AP मज्झदेस" | 13. AP महि" ।
( 9 ) 1.AP विबज्झइ 2. AP रहवेंभल । 3. AP उण्य 4. A सीख। 5. AP सीयलु सीमलु सुरयाहरणउं ।