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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण कामिणीउ जो महियलि जाणइ सो लंकाहिव रइसुहं माणइ । भई मंद लय हंसि चउत्थी चउविह महिलाजाइ पसत्थी। भद्द भणमि सवंगसुरूविणि मंद थूलगुरुपेढालत्थणि'। लय दीहरतणु लय जिह पत्तल खुज्जी णारि मरालि समासल । रिसिविज्जाहरजक्खपिसायहं अंस होंति रमणीसंघायहं । तावसि उज्जुब भुभुलभोली खेयरि महराकुसुमरसाली।
जक्विणि धणकणलोहपरबस अडण पिसल्ली भणिय सतामस । घत्ता-मारसि भिगि रिट्टिणि ससि धयरविणि महिसि खरी मयरि विजुवइ ।।
सत्तें दीसते" रइसइकतें वसुविह् कह्यि णिसुणि णिवइ ।। 6 ।।
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वच्छत्थलु थणकलसहि पेल्लइ सारसि पिययमसंगु ण मेल्लइ। मिगि णियबंधवदाणे मण्णइ तज्जिय तसइ गेउ आयण्णइ । पत्तहंडक्खिणि वायसरव रिणि ठाणु मुयइ रणभइरव । ससि णिम्मीलियच्छि दुहभायण णिग्घिण परहरगासालोयण ।
धयरटुिणि सररुहसरकीलिणि महिसि कराल रोसरसवालिणि। है, हे लकाराज, वह रति सुख को मानता है । भद्रा, मंदा, लता और चौथी हंसा यह चार प्रकार की महिलाजाति प्रशस्त मानी गई है। भद्रा को मैं कहता हूँ कि वह सर्वांग सुन्दर होती है, जबकि मंदा अत्यन्त मोटो और भारी चौड़े स्तनों वाली होती है। लता लंबे शरीरपाली एवं लता के समान पतली होती है । हंसा नारी कुबड़ी और थुलथुल. (मांसल) होती है । ऋषियों, विद्याधरों, यक्षों और पिशाचों को जो रमणीय समूह है. वह हंसा होती है । तापसी नारी सीधी और स्वभाव से भोली होती है। विद्याधरी मदिरा और कुसुमों में आसक्त होती है। यक्षिणी धन-धान्य के लोभ के अधीन होती है, और पिशाचिनी घूमने वाली और तामस भाव से मुक्त कही जाती है ।
घत्ता-सारसी, मृगी, रिष्टणी, शशि, धृतराष्ट्रणी, महीषी, खरी और मयूरी युवतियां भी होती हैं । इस प्रकार कामदेव की आठ प्रकार की युबतियाँ कही गई हैं। हे राजन् उन्हें सुनिए ।
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इनमें सारसी प्रिय के बक्षस्थल को अपने स्तनरूपी कलशों से प्रेरित करती है और प्रियतम के संग को नहीं छोड़ती। मुगी अपने भाइयों के दान के द्वारा संतुष्ट होती है। डॉटने पर प्रस्त होती है। और गीत सुनती रहती है। रिष्टणी पुत्र रूपी भांड से दुःखी कौवे के समान स्वर वाली, रण से भयंकर अपने स्थान को छोड़ देती है । शशि अपनी आँखें बंद किए हुए दुःख की भाजन होती है। दूसरों के घर पर भोजन करने वाली होती है। धृतराष्ट्रणी कमलों के तालाबों में क्रीड़ा 5. P adds after this : णरवर मंदा णिणि णिबिणि 6. Pमाणि घुलगुरुपोढविलासिणि । 7. AP add after this : णउ सेविजजइ सा वि यलक्खणि 18. AP भुभुरभोली; T भंभुर। 9AP रिट्रिणि। 10.AP दीसलें।
(7) 1A मृगि णिवबंधय ।
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