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72] महाकवि पुष्पवन्त घिरचित महापुराण
[71.9.7 दिदुइ दोसि णिरुत्तउ चुक्कइ पुणु जम्मि वि ण संमुह ढुक्कइ । सच्चे विणएं दाणे घिप्पड़
इयरह पुणु तहि अंगु ण छिप्पइ । रइजल पोंभल मउ सोणीयलु णिप्पडियंध चारु तणुपरिमलु । आयंबिरणह सोहियकमकर सुंदरि साहारणसुरयायर।
10 कसण फरूस मरुपमइ विलासिणि बहु अहारु लेइ बहुभासिणि। पत्ता--करकहिणपहारहिं सद्दगहीरहि पयडउं पडु विडु जइ रमद ।। परिभमणपरिक्वहि कालकडक्खहि ता कामग्गि ताहि समइ ।।9।।
10 जहिं एयइइ पथइइ फुड भिण्णी सा तोंतडिय दोहि संकिणी। जिह पयइउ' तिह बिहिं बिहिं जायई अंसयसत्तई मई विण्णायई। जाइउ देसिउ तिह मई बुद्धउ । भाउ दुबिहु अविसुद्ध विसुद्धउ । पहिलारउ सवत्तिसहवासें वयपरिणामें दीहपवासें। आसंकइ चामीयरलोहें
अवरेहि वि कारणसंदोहें। वह असुद्धभाउ णारीयणु तेण वि वेयारिज्जइ जडयणु। आलोयंतहं संमुहूं जोय
मुहं वियसावई' करयल ढोबइ। समान कोमल होती है। दोष दिखाई देने पर वह चुप-चाप हो जाती है। फिर जन्म भर सामने नहीं आती। फिर सत्य, विनय और दान से ही वह ग्रहण की जाती है। दूसरी तरह से शरीर का स्पर्श नहीं किया जा सकता । वह रति जल से प्रचुर होती है। उसका स्वर्णिम तल कोमल होता है। और उसका शरीर रूपी सौरभ दुर्गन्धरहित होता है। उसके नख लाल होते हैं। काम करती हुई शोभित होती है, ऐसी वह सामान्य सुरति में आदर रखने वाली होती है। कृष्ण कठोर और विलासिनी होती है । वात प्रकृति वाली बहुत खाती है और बहुत बोलती है।
घता-- चतुर, प्रेमी उससे हाथ के कठिन प्रहारों और गंभीर शब्दों के द्वारा, रूप से उसे रमण करता है। आलिंगन, चुम्बन आदि तथा कठोर बाटाक्षों के द्वारा वह उसकी कामाग्नि को शांत करता है।
(10) जहाँ प्रकृति-प्रकृति से स्त्री भिन्न होती है, दोनों से संकीर्ण वह मिश्रित होती है। जिस प्रकार की प्रकृति होती है, उसी प्रकार दो-दो प्रकार के भेद होते हैं । इस प्रकार हंस आदि और सात्विक स्त्रियों को मैंने जान लिया। देसी जाति को भी मैंने उसी प्रकार जान लिया 1 भाव भी दो प्रकार के होते हैं। विशुद्ध और अविशुद्ध । पहला भाव अपनी पत्नी के सहवास से होता है। दूसरे (अविशुद्ध भाव) को बय के परिणाम, दीर्घ प्रवास, स्वर्ण लोभ और दुसरे कारण समूह से नारीजन धारण करती हैं। इनसे भी मूर्खजन विकार को प्राप्त होते हैं । वह देखनेवालों के सामने देखता है, मुख का विकास करता है, और करतल उस पर रख देता है। हे देव, ऐसे भी नारीजन 6. APT पिप्पडियम्म; K णिपडियंध but records a p: णिप्पडियम इति पाठे संस्काररहितः । 1.AP भवण 18. A तो।।
(10) 1 A पइओ। 2. P जणुउ । 3. AP सवित्ति” 4. AP °पयासें । 5. AP अवरेण । 6. AP जडमणु। 1. AP विहसावइ ।