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सो वि देव विसहि पालिज्जइ मंदु तिक् तिक्खर पत्त पत्ता - भल्लाउं शिवसणु रयण विहसणु जो णु णारिहि हरइ मणु ॥ तं" पुणु पिएं पिडीहूएं मयणहुया से उहृद्द तणु 10 ||
महाकपुष्कपंत विरइयउ महापुराण
ताहि दूचि का वि पेसिज्ज इ इंगिएहि देहुभव लिंगहि भुक्खड़ भग्गी अण्णहु लग्गी गणकं णिद्दालस मत्ती रुट्टी गिट्ठर कट्टपलाबिगि सीय' विसेसि परकुलउत्ती तोचि जाउ चंदहि सुदेहिहि ता पेसिय सा" राएं तेतहि ग गयणंगणेण सा खेयरि जोयइ' चित्तकूडु णंदणवणु
बुद्धिs संकिण्णत्तणु णिज्जइ । सुद्धभाव तिहि भेयहि जुत्तद ।
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ताइ भावसंभव जाणिज्जइ ।
haणणे हसणे पसंग srifs कमखल संसग्गी । सुहसोयाउर परगयचित्ती । एही उ सेविज्जइ भाविणि । एक्क वि एत्यु जुत्ति गउ जुत्ती । मणअवहृणु करउ वह देहिहि । तं वाणारसिपुरवरु जेत्तहि । पंडुभवणावलि जोवि पुरि । णं महिमहिलहि केर जोब्बणु ।
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9. P तें पुणु । 10. AP दहई ।
( 11 ) 1 सीलविसेसि 2. AP राएं सा । 3. AP वाराणस° 14. AP जोइय ।
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का चतुर लोगों को पालन करना चाहिए और उसे बुद्धि से संकीर्ण भाव की ओर ले जाना चाहिए। मंद, तीक्ष्ण और तीक्ष्णतर - शुद्धभाव इन तीन भेदों से युक्त कहा गया है।
धत्ता -- सुंदर निवसन, रत्नभूषण और यौवन नारी का मन हरता है । फिर उसे प्रिय के दूत के निकट होने पर कामदेव को आग जलाने लगती है।
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इसलिए वहाँ पर किसी दूतो को भेजना चाहिए। उसके द्वारा संकेतों, शरीर से उत्पन्न चिह्नों, किए गए स्नेह और अस्नेह के प्रसंगों के द्वारा उसके भावों की उत्पत्ति को जानना चाहिए। भूख से मग्न, किसी दूसरे से लगी हुई, धन की लालची, दुष्टों का संसर्ग करनेवाली, गमन की आंकाक्षा रखने वाली, निद्रा से आलसी, मतवाली, सुधीजनों के लिए शोकातुर, दूसरे में चित लगाने वाली, रूठी हुई, निष्ठुर और कठोर भाषण करने वाली स्त्री का सेवन नहीं करना चाहिए। सीता विशेष रूप से श्रेष्ठ कुल की पुत्री है। उसके संबंध में यह एक भी युक्तियुक्त नहीं है । तव भी हे चन्द्रनखे, तुम जाओ और सीतादेवी के मन का अपहरण करो। तब राजा ने उसे वहाँ भेजा जहाँ श्रेष्ठ वाराणसी नगरी थी। आकाश के प्रागंण से वह देवी वहाँ गई, और सफेद घरों की पंक्तियों वाली उस नगरी को देखकर वह चित्रकूट और नंदन बन को इस प्रकार देखती है, मानो धरती रूपी महिला का यौवन हो ।
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