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एकहत्तरिमो संधि
णरसिरकरखंडणु' कहिं तं भंडणु एम भणंतु जि संचरइ ॥ तहिं विप्पियगारउ आयउ णारउ अत्थागंतरि पइसरइ ।। घ्र वकं ॥ छ।
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उद्धाबद्धपिंगजडमंडलु पोमरायरयणमयकमंडलु। तारतुसारहारपंडुरतणु' णं ससहरु णावइ सारयघणु । विमलफलिहमणिवलयालंकिउ णं जसुपुरिसरूवु विहिणा किउं। दीसइ एतउ रायहु केर रणकायरभडभयई जणेरडं। कडियलणिहियहेममयमेहलु। हसणु भसणु सबसणु सकलुसु खलु । सोत्तरीयउववीयउरुज्जलु हिंडणसीलु समीहियकलयलु । कयदेवंगवत्यकोवीणउ जुजा अपेच्छमाणु णिरु झोणउ । दिट्ठउ रावणेण पडिदत्तिइ वइसारिउ आसणि गुरुभत्तिइ।
इकहत्तरवीं संधि
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वह लड़ाई कहा है कि जिसमें मनुष्यों के सिर, हाथों का खंडन होता है, इस प्रकार कहता हुआ जो विचरता रहता है, ऐसा लोगों का अप्रिय करने वाला नारद बहाँ आता है, और दरबार के भीतर प्रवेश करता है।
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जिसने अपने पीले जटा समूह को ऊपर बांध रखा है, जिसका कमंडलु पद्मराज मणियों से बना है, जिसका शरीर स्वच्छ हिमकण के द्वार के समान सफेद है, मानो चन्द्रमा हो या दीय मेघ । स्वच्छ स्फटिक मणि के बलय से अंकित वह ऐसा मालूम होता है, मानो उसके पुरुष रूप की विधाता ने स्वयं रचना की है, आता हुआ वह ऐसा दिखाई देता है कि जैसे राजा के रण में कायर योद्धाओं के लिए भय उत्पन्न करने वाला हो। उसके कटितल में स्वर्णमेखला थी। जो बहुत हँसता बोलता, ईर्ष्या से युक्त और युद्ध में आसक्ति रखनेवाला था। उत्तरीय को पहने हुए उसका वक्षस्थल उज्जवल था। घूमते हुए, और युद्ध की इच्छा रखते हुए, उसकी कौपीन वस्त्रों की बनी हुई थी। जो युद्ध न होने से अत्यन्त क्षीण हो गया था। रावण ने उसे देखा और
(1) 1, 1 AP परकरसिर 1 2. A बोल्ला णार; P आइउ णारउ । 3. P उद्धाबद्ध पिंगु जडमंडलु। 4.Pपंडर15.A जसरून परिस विहिणा। 6.A एतहो; P एत। 1. Pा । 8. AP बसणु । 9A° उरग्जलु । 10. A रामणेण ।